कुसुमित हुआ हो जैसे बीज
एक ऊर्जा है अनाम जो
खींच रही सदा अपनी ओर,
पता ठिकाना कौन जानता
जिगर दीवाना जिसका मोर !
खींच रही सदा अपनी ओर,
पता ठिकाना कौन जानता
जिगर दीवाना जिसका मोर !
प्रेम उमगता भीतर आता
कहाँ से ? यही खबर न मिलती,
जिसकी तरफ उमड़ती धारा
जरा भनक ना उसकी पड़ती !
कहाँ से ? यही खबर न मिलती,
जिसकी तरफ उमड़ती धारा
जरा भनक ना उसकी पड़ती !
हृदय पिघलकर बहता जाता
राहें नहीं नजर आती है,
‘मैं’ खोया अशेष ‘वह’ कैसे
उसकी छाया मिट जाती है !
राहें नहीं नजर आती है,
‘मैं’ खोया अशेष ‘वह’ कैसे
उसकी छाया मिट जाती है !
कण-कण में मधु बिखरा जिसका
कैसे एक दिगंत समाए,
हर इक घड़ी अमी बन जाती
मिटकर ही अनंत को पाए !
कैसे एक दिगंत समाए,
हर इक घड़ी अमी बन जाती
मिटकर ही अनंत को पाए !
तृप्त हुआ फिर डोले उर यह
कुसुमित हुआ हो जैसे बीज,
मंजिल पर ज्यों राह आ मिली
छूट गयी पथ-सफ़र की प्रीत !
कुसुमित हुआ हो जैसे बीज,
मंजिल पर ज्यों राह आ मिली
छूट गयी पथ-सफ़र की प्रीत !
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24-06-2021को चर्चा – 4,105 में दिया गया है।
जवाब देंहटाएंआपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क
बहुत बहुत आभार!
हटाएंतृप्त हुआ फिर डोले उर यह
जवाब देंहटाएंकुसुमित हुआ हो जैसे बीज,
मंजिल पर ज्यों राह आ मिली
छूट गयी पथ-सफ़र की प्रीत !
वाह!!!
जीवन सफर की मोह भी तब छूटेगा जब मोक्ष के करीब होंगे...।
बहुत ही लाजवाब।
एक ऊर्जा है अनाम जो
जवाब देंहटाएंखींच रही सदा अपनी ओर,
सच !ऊर्जावान ह्रदय मंज़िल पा जाता है !!
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसुमन जी, सुधा जी, अनुपमा जी व ज्योति जी स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंतृप्त हुआ फिर डोले उर यह
जवाब देंहटाएंकुसुमित हुआ हो जैसे बीज,
मंजिल पर ज्यों राह आ मिली
छूट गयी पथ-सफ़र की प्रीत !
आध्यात्मिक गहरे मर्म समेटे हुए बहुत ही सुंदर सृजन अनीता जी,सादर
बेहतरीन सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर एक अनाम उर्जा तो है जरूर, उसी उर्जा को सचमुच नमन।
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन।
वाह! बहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंकामिनी जी, भारती जी, कुसुम जी, व विश्वमोहन जी आप सभी का स्वागत व आभार!
जवाब देंहटाएंये अनाम ऊर्जा स्वयं से जनम लेती है और स्वयं को प्रेरित करती है ...
जवाब देंहटाएंहिरन की म्रिग्माया जैसे है ...
तृप्त हुआ फिर डोले उर यह
जवाब देंहटाएंकुसुमित हुआ हो जैसे बीज,
मंजिल पर ज्यों राह आ मिली
छूट गयी पथ-सफ़र की प्रीत !
...प्रेरणा देती सुंदर रचना।