मंगलवार, नवंबर 9

मन चातक सा तकता रहता


मन चातक सा तकता रहता 


सागर के तट पर बैठा हो  

फिर भी कोई, प्यासा ! कहता, 

जीवन बन उपहार मिला है 

मन चातक सा तकता रहता !


अभी बनी खोयी पल भर में 

लहर जानती कहाँ स्वयं को, 

छोटे से जीवन में अपने 

टकराया करती आख़िर क्यों !


पीड़ा का क्या यही सबब है 

सीमित इक पहचान बनायी, 

माटी का पुतला है यह तन 

स्वप्नों में ही प्रीत रचायी !


कौन जोड़ता है कण-कण को 

किससे मानस क्या बना लहर,

नित्य अजन्मा है असंग जो 

एक तत्व ऐसा भी भीतर ?


15 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बहुत आभार पम्मी जी!

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  2. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (10-11-2021) को चर्चा मंच        "छठी मइया-कुटुंब का मंगल करिये"  (चर्चा अंक-4244)       पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    छठी मइया पर्व कीहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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  3. कौन जोड़ता है कण-कण को
    किससे मानस क्या बना लहर,
    नित्य अजन्मा है असंग जो
    एक तत्व ऐसा भी भीतर ?
    बहुत ही उम्दा रचना!

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  4. सागर के तट पर बैठा हो

    फिर भी कोई, प्यासा ! कहता,


    भाव विभोर कर दिया इस पंक्ति ने।
    बधाई

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  5. पीड़ा का क्या यही सबब है

    सीमित इक पहचान बनायी,

    माटी का पुतला है यह तन

    स्वप्नों में ही प्रीत रचायी !


    बहुत सुंदर पंक्तियाँ...

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  6. सुंदर जीवन दर्शन से परिपूर्ण रचना ।

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  7. अनीता जी, मनोज जी, विकास जी और जिज्ञासा जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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