मंगलवार, अप्रैल 15

खो गये वे शब्द सारे

खो गये वे शब्द सारे 


खो गये वे शब्द सारे 


नाव हम जिनकी बनाकर 

पहुँच जाते थे किनारे !


अब यहाँ लहरें व हम हैं 

डूबने में कहाँ  ग़म है, 

छू लिया जिसने तली को 

संस्तर हो गये बेगाने !


खो गये वह शब्द सारे 


नीड़ जिनसे हम बनाकर 

श्रम मिटाकर शरण धारे !


अब यहाँ विस्तृत गगन है 

उड़ें जिसमें यह लगन है, 

पा लिया जिसने फ़लक को 

नीड़ हो गये बेगाने !


खो गये वे शब्द सारे 


ढाल जिनकी हम बनाकर 

झेलते थे दंश सारे ! 


अब यहाँ केवल ख़ुशी है 

महकती सी ज़िंदगी है, 

पा लिया है तोष जिसने 

युद्ध हो गये बेगाने !


10 टिप्‍पणियां:

  1. मन की बहुत सुंदर उजास अभिव्यक्ति पूर्ण पारितोष सुख इस इक संतोष मे

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 16 अप्रैल को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. बहुत ही सुन्दर, हृदय को छू गई आपकी अभिव्यक्ति अनीता जी

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  4. वाकई खो गये वे शब्द सारे ...
    बहुत ही भावपूर्ण सार्थक सृजन

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