खो गये वे शब्द सारे
खो गये वे शब्द सारे
नाव हम जिनकी बनाकर
पहुँच जाते थे किनारे !
अब यहाँ लहरें व हम हैं
डूबने में कहाँ ग़म है,
छू लिया जिसने तली को
संस्तर हो गये बेगाने !
खो गये वह शब्द सारे
नीड़ जिनसे हम बनाकर
श्रम मिटाकर शरण धारे !
अब यहाँ विस्तृत गगन है
उड़ें जिसमें यह लगन है,
पा लिया जिसने फ़लक को
नीड़ हो गये बेगाने !
खो गये वे शब्द सारे
ढाल जिनकी हम बनाकर
झेलते थे दंश सारे !
अब यहाँ केवल ख़ुशी है
महकती सी ज़िंदगी है,
पा लिया है तोष जिसने
युद्ध हो गये बेगाने !
मन की बहुत सुंदर उजास अभिव्यक्ति पूर्ण पारितोष सुख इस इक संतोष मे
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार प्रियंका जी !
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जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 16 अप्रैल को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बहुत आभार पम्मी जी !
हटाएंबहुत ही सुन्दर, हृदय को छू गई आपकी अभिव्यक्ति अनीता जी
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार शालिनी जी !
हटाएंवाकई खो गये वे शब्द सारे ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण सार्थक सृजन
स्वागत व आभार सुधा जी !
हटाएंkya ant kiya hai aapne rachna ka!!
जवाब देंहटाएंthanks !
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