अनोखा शिल्प
उस दिन एक शिल्प देखा
नीचे कूल्हे से लेकर दो पैर हैं माटी के
ऊपर छाती से सिर तक का भाग है
बीच का पेट गायब है
ऐसा दृश्य यदि दिखे तो क्या बताता है
गरीब का पेट पीठ से लग गया है
इसलिए गायब है
अमीर का इतना बड़ा हो गया है
कि लाखों की संपत्ति भी कम पड़ जाती है
वह बाहर निकल आया है
और शरीर का भाग नहीं लगता
यही तो आदमी को कोल्हू की तरह घुमाता है
रोज भरना होता है उसे
एक कुएं की तरह है पेट
जिसमें पेंदी नहीं है
पेट सीमित हो अपने सही स्थान पर
तभी पूर्ण हो सकेगा वह शिल्प
जिसमें कूल्हे के नीचे पैर हैं और
छाती के ऊपर सिर
पर मध्य का स्थान खाली है !
मर्म समझ रहा हूँ आपकी बात का मैं अनीता जी । कुछ सूझता ही नहीं कि यह सामाजिक खाई आख़िर कैसे पटेगी ।
जवाब देंहटाएंकविता के मर्म को समझकर सार्थक प्रतिक्रिया हेतु स्वागत व आभार !
हटाएंसादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 19-03-2021) को
"माँ कहती है" (चर्चा अंक- 4010) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
बहुत सुन्दर और सार्थक सृजन।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंसार्थक रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंऊंच नीच, भेद भाव,अमीर गरीब हमारे समाज को अपने अंकुश में समेटे हुए हैं जिस दिन ये खाई भर जाएगी,इस दिन ये शिल्प भी नही बनेगा, सार्थक रचना के लिए आपको नमन ।
जवाब देंहटाएंसही कह रही हैं आप जिज्ञासा जी, जब तक समाज में भेदभाव कायम है तब तक यह खाई बढ़ती ही जाएगी।
हटाएंकिसी शिल्प से भी अद्भुत भाव देखने कि आपकी क्षमता प्रशंसनीय है ....
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंशब्दों की अद्भुत शिल्पकारी प्रिय अनीता जी,बेहद संवेदनशील सृजन,सादर नमन आपको
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंअमीर-गरीब के बीच के खाई आज के दौर में पट पाना तो असंभव ही है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंशिल्प के बहाने जीवन का यथार्थ पिरो दिया है आपने अपनी इस कविता में...साधुवाद 🌹🙏🌹
जवाब देंहटाएंमर्म को छूते भाव सराहनीय सृजन ।
जवाब देंहटाएंसादर
सत्य कहा है आपने । परम सत्य ।
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