सोमवार, अक्टूबर 6

चक्र से बाहर

चक्र से बाहर 


आने दो यादों के बादल 

छाने दो भावों के बादल, 

वर्तमान का नभ अनंत है 

तिरने दो शब्दों के बादल !


उड़ें हवा संग, हों काफ़ूर 

बहकर यहाँ से जायें दूर, 

नीला गगन स्वच्छ निर्मल पर 

सदा अचल, रहे अडिग हुज़ूर !


तुम भी तो कुछ उसके जैसे 

कहाँ ख़त्म होती है सीमा, 

हर पल नया रूप धर आये 

दिखे न परिवर्तन, हो धीमा !


माना जाह्नवी अति पुरातन 

जल इस क्षण में नया आ रहा, 

एक चक्र में घूमती सृष्टि 

हो जो बाहर, वही देखता !


1 टिप्पणी:

  1. आने दो यादों के बादल
    छाने दो भावों के बादल,
    वर्तमान का नभ अनंत है
    तिरने दो शब्दों के बादल !

    बहुत सुंदर काव्य पंक्तियाँ भावपूर्ण सरस अभिव्यक्ति बेरोकटोक

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