फूलों की घाटी और हेमकुंड की यात्रा
पहला भाग
१ सितम्बर २०२५
हमारी यात्रा अगस्त माह के अंतिम दिवस शुरू हुई।सुबह साढ़े सात बजे हम घर से चले। आरामदायक हवाई यात्रा के बाद दोपहर बाद देहरादून पहुँच गये। दीदी-जीजा जी के यहाँ सदा की तरह शानदार स्वागत हुआ। उनकी गृह सहायिका समोसे व कलाकंद ले आयी थी। हमने कुछ देर दीदी-जीजा जी के पुराने फ़ोटो देखे। दीदी के लिखे जीवन के कई पुराने प्रसंग पढ़े। बगीचे में चहलक़दमी की और फूलों की तस्वीरें उतारीं। रात्रि भोजन में कढ़ी-चावल, लौकी की विशेष सब्ज़ी और नमकीन सेवियाँ भी थीं। रह-रह कर वर्षा की टिप-टिप आरम्भ हो जाती थी, लेकिन रात भर वर्षा रुकी रही। सुबह पाँच बजे ही हम तैयार हो गये थे। दीदी ने नाश्ता बना कर दे दिया था। देहरादून से ऋषिकेश होते हुए सबसे पहले हम देवप्रयाग पहुँचे, जहां सतोपंथ ग्लेशियर से निकलने वाली अलकनंदा व गोमुख से निकलने वाली भागीरथी नदी का संगम होता है। इसके बाद इनका नाम गंगा हो जाता है। इसके बाद श्रीनगर आया जो अलकनंदा के तट पर बसा गढ़वाल क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण बड़ा शहर है। रुद्रप्रयाग में अलकनंदा व सुमेरु ग्लेशियर से निकलने वाली मंदाकिनी नदी का संगम होता है। पिछले दिनों रुद्रप्रयाग में बादल फटने से हुई अत्यधिक वर्षा के कारण काफ़ी नुक़सान हुआ था। जिसके कारण हमें यात्रा स्थगित करने का विचार भी आया था। अगला स्थान था कर्णप्रयाग, जो अलकनंदा व पिंडारी ग्लेशियर से आने वाली पिंडर नदी के संगम पर बसा है।नंदप्रयाग में नन्दाकिनी ग्लेशियर से आने वाली नन्दाकिनी व अलकनंदा नदी का संगम होता है। नदियों का पानी वर्षा के कारण मटमैला था, पर दूर से वेगपूर्वक आते हुए वे कभी चाँदी के समान कभी दूध की तरह श्वेत भी प्रतीत हो रही थीं। पीपलकोटि पहुँचे तो दोपहर के भोजन का समय हो गया था।नाश्ता हमने ऋषिकेश में ही कर लिया था।रास्ते में कई जगहों पर भूस्खलन के कारण मलबा पड़ा था। जिसे हटाने का कार्य भी साथ-साथ ही चल रहा था।फूलों की घाटी और हेमकुंड की यात्रा हमारे मनों में बसा एक सुंदर स्वप्न था, जो आज साकार होने जा रहा था।हमारा लक्ष्य था औली में स्थित ‘ब्लू पॉपी आवास’।वही औली, जहाँ शीतकालीन खेलों का आयोजन होता है। किंतु ड्राइवर ने बताया, किसी कारण वश ब्लू पॉपी के मैनेजर ने कार्यक्रम में थोड़ा सा बदलाव किया है, अब हमें जोशीमठ जाना है और कल औली। ग्यारह घंटे की यात्रा के बाद शाम को सवा चार बजे हम जोशीमठ पहुँचे गये।औली और जोशीमठ के बीच केवल तेरह किमी की दूरी है।
ऋषिकेश से लगभग ढाई सौ किमी दूर तीन हज़ार साल पुराना शहर है जोशीमठ, जिसका दूसरा नाम ज्योतिर्मठ है।यह त्रिशूल पर्वत की ढाल पर अलकनंदा के किनारे बसा हुआ है। इसके दोनों ओर बद्री तथा कामत शिखर हैं। आठवीं शताब्दी में यहाँ आदि शंकराचार्य ने एक मठ की स्थापना की थी, जो उन चार मठों में से एक है, जिन्हें उन्होंने भारत की चार दिशाओं में स्थापित किया था। यह मठ बद्री भगवान का शीतकालीन निवास है। सर्दियों में आदि शंकराचार्य द्वारा ही स्थापित बद्रीनाथ मंदिर के कपाट बंद हो जाने के बाद देवमूर्ति जोशीमठ के वासुदेव मंदिर में लायी जाती है। बद्रीनाथ से आये नंबूदरीपाद ब्राह्मण छह माह यहीं बिताते हैं।जोशीमठ से २६ किमी दूर गोविंद घाट से यात्रा का ट्रैक आरम्भ होता है जो घांघरिया तक ले जाता है।जहाँ से फूलों की घाटी व हेमकुंड जाया जा सकता है। प्राचीन ग्रंथों में जोशीमठ को कार्तिकेय पुर के नाम से भी लिखा गया है।जो कत्यूरी राजाओं के देवता हैं। यह मलारी और नीति घाटियों का प्रवेश द्वार भी है। इससे कुछ दूरी पर नंदा देवी बायोस्फ़ियर है, जो यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है।
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