शांति सरवर मन बने
शांत मन ही ध्यान है
ईश का वरदान है,
सिंधु की गहराइयाँ
अनंत की उड़ान है !
आत्मा के द्वार पर
ध्यान का हीरा जड़ें,
ईश चरणों में रखी
भाग्य रेखा ख़ुद पढ़ें !
जले भीतर ज्ञान अग्नि
शांति सरवर मन बने,
अवधान उपज प्रेम से,
कर्म को नव दिशा दे !
लौट आये उर सदन
ऊर्ध्वगामी गति मिले,
टूट जायें सब हदें
फूल अनहद के खिलें !
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