सोमवार, मार्च 24

झर जायेगा पतझड़ सारा

झर जायेगा पतझड़ सारा



सच को अनदेखा हम करते
फिर उखड़े उखड़े से रहते,
वही देखते जो मन चाहे
वरना नयन मुंदे ही रहते !

सच को जो सच ही मानता
बन द्रष्टा मन लीला जाने,
वही मुक्त होकर रह पाता
पल-पल उसके बने सुहाने !

झर जायेगा पतझड़ सारा
नूतनता हर पल झलकेगी,
कोई भर देगा अमृत भी
गागर जब पूरी निखरेगी !

प्रकृति प्रेम लुटाना जाने
दीवाने हम खुद में खोये
 नजर उठाकर नहीं निहारें
चंदा तारे नभ में सोये !

छोटे-छोटे इम्तहान से
पल भर में ही घबरा जाते
असल परीक्षा शेष अभी है
मिलें मृत्यु से हंसते गाते !  

4 टिप्‍पणियां: