मंगलवार, जनवरी 12

लोहित के पार


अरुणाचल प्रदेश के रोइंग जिले का ‘मिशिमी हिल कैम्प’ दो दिनों के लिए हमारा घर बन गया है. जिसे श्री पुलू चलाते हैं. इस प्रदेश की यह हमारी पहली यात्रा नहीं है, पिछले कई वर्षों के दौरान खोंसा, मियाओ, बोमडिला, तवांग, देवांग, परशुराम कुंड, आदि स्थानों को देखने के बाद इस वर्ष के दो अंतिम दिन बिताने हम रोइंग आए हैं. उत्तर-भारत का सबसे बड़ा राज्य अरुणाचल जिसकी सीमाएं देश में असम तथा नागालैंड से मिलती हैं तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन, भूटान और बर्मा से, प्राकृतिक सुन्दरता के लिए विख्यात है. कल सुबह साढ़े सात बजे हम दुलियाजान से रवाना हुए और असम की सीमा पार कर चोखम नामक स्थान में स्थित बौद्ध मन्दिर ‘पगोडा’ में कुछ देर रुक व नाश्ता करके पांच घंटों की रोमांचक यात्रा के बाद यहाँ पहुंच गये. आलूकबाड़ी में लोहित नदी को वाहन सहित फेरी से पार किया, एक साथ चार-पांच वाहन तथा बीस-पच्चीस व्यक्तियों को लेकर जब नाव नदी पार कर रही थी तो दृश्य देखने योग्य था. नदी पर पुल निर्माण का कार्य जोरों से चल रहा है, पर आगे भी दो-तीन जगह छोटी-उथली नदियों को उनमें से गुजर कर पार करना पड़ा, जिन पर पुल बनने में अभी काफी समय लगेगा. छोटे-बड़े श्वेत पत्थरों से ढके विशाल नदी तट देखकर प्रकृति की महिमा के आगे अवनत हो जाने अथवा विस्मय से भर जाने के अलावा कुछ नहीं किया जा सकता.

दोपहर का भोजन आते ही मिल गया, हल्का-फुल्का शाकाहारी भोजन स्वादिष्ट था. उसके बाद हमने स्थानीय दर्शनीय स्थलों के बारे में जानकारी हासिल की, सौभाग्य से यहाँ के वर्तमान संसद सदस्य वहीं थे, वे नये वर्ष पर उसी रिजॉर्ट में पार्टी आयोजन करने के सिलसिले में बात करने आये थे. उन्होंने ‘सैली लेक’ तथा ‘नेहरु उद्यान’ देख आने के लिए कहा. रोइंग से छह किमी दूर स्थित ‘सैली झील’ हरे-भरे वृक्षों तथा पहाड़ियों से घिरी है. झील के चारों ओर सुंदर भ्रमण पथ बने हैं. तस्वीरों में हमने उसकी सुन्दरता को कैद किया और कुछ देर वहाँ रुकने के बाद नेहरु उद्यान पहुंचे, जो एक विस्तृत इलाके में फैला है, बच्चों के लिए झूले, ग्रीन हॉउस तथा फूलों के बगीचे और विशाल पेड़ों से सजा यह उद्यान सुबह-शाम घूमने वालों के लिए आदर्श स्थान है. लौटे तो नदी किनारे जाकर कुछ तस्वीरें लीं शाम ढलने को थी, डूबते हुए सूर्य को प्रणाम करते हुए हम कमरे में  लौट आये.

जिस कमरे में बैठकर मैं लिख रही हूँ, उसके फर्श पर बेंत से बनी सुंदर चटाई बिछी है. दीवारें तथा छत भी लकड़ी तथा पतले बांस की बनी हैं. लकड़ी की ही शय्या है, दरवाजे से बाहर निकलते ही एक बड़ा सा अहाता है, जिसका फर्श भी लकड़ी का है. कुछ ही दूर पर भोजनालय है और दायीं ओर एक नदी बहती है. सामने ऊंचे पहाड़ हैं. इस कैम्प तक पहुंचने से कुछ कदम पहले ही यहाँ के भूतपूर्व मुख्यमंत्री तथा वर्तमान सांसद श्री मुकुट मिथि का बंगला है, जो शानदार है. अभी कुछ देर पहले हम उनके निमन्त्रण पर एक कप कॉफ़ी पीने गये. उनकी मेहमाननवाजी का लुत्फ़ उठाया, वे सरल स्वभाव के हैं तथा उन्हीं की तरह उनकी पत्नी भी बहुत गर्मजोशी से मिलीं. वे मिशिमी जन जाति के हैं, इस जाति की भी तीन उपजातियां हैं, जिनके लोगों की पहचान पारंपरिक वस्त्रों के रंगों से होती है. घर की साज-सज्जा पारंपरिक व आधुनिक वास्तुकला का मेल थी. देश के कई भूतपूर्व कांग्रेसी नेताओं के चित्रों को वहाँ देखा. घर के पिछले भाग में एक बड़ा सा हॉल था, जहाँ  बीचोंबीच व्यवस्थित ढंग से आग जल रही थी, छत से लटकता हुआ एक बांस का बना चौकोर तख्ता देखा, जिस पर महीन बेंत की चटाई लगी थी, जो धुंए को अपने में समा लेता है. फर्श पर भी चटाइयां बिछी थीं. कई बेंत के मूढ़े पड़े थे. उन्होंने बताया, उनके गाँव में हर घर में एक ऐसा स्थान होता है, परिवार का मुखिया उस स्थान पर बैठता है. दायीं तरफ पंक्तिबद्ध उसकी घर की महिलाओं के कमरे होते हैं. यहाँ पहले बहुपत्नी प्रथा थी. सभी महिलाएं अपने-अपने यहाँ पकाए भोजन को वहाँ लाकर रख देती हैं तथा सब मिलकर भोजन ग्रहण करते हैं. अरुणाचल के इतिहास व भूगोल के बारे में हमने उनके साथ रोचक वार्तालाप का आनन्द लिया. ब्रह्मपुत्र के जन्म तथा परशुराम कुंड से जुड़ी पौराणिक कथाएँ भी उन्होंने सुनायीं. एक बार ऋषि शांतनु व उनकी पत्नी पुत्र प्राप्ति के लिए तप कर रहे थे, प्रसन्न होकर जब ब्रह्मा जी वर देने आये तो ऋषि वहाँ नहीं थे. उनकी पत्नी ब्रह्मा जी के चार मुख देखकर भयभीत हो गयीं. पुत्र का जन्म हुआ पर वह द्रव रूप में था, जो ब्रह्मपुत्र नद कहलाया. परशुराम ने जब पिता के कहने पर अपनी माता का सर काटा तो परशु उनके हाथ से अलग नहीं हो रहा था, वे इस स्थान पर आये जहाँ ब्रह्पुत्र का बहाव रुक हुआ था, उस पर्वत पर प्रहार करने से उनका परशु विलग हो गया. एक पंजाबी संत की कथा भी उन्होंने सुनाई जो घूमते हुए यहाँ आ गये थे. सदियों से यहाँ भारत के दूर-दूर स्थानों से साधू-संत आते रहे हैं. भारत एक अनोखी संस्कृति वाला देश है और देश की एकता के सूत्र हर क्षेत्र में बिखरे हुए हैं.

आज यहाँ ठंड काफी कम है, नदी की कल-कल का स्वर एक मधुर संगीत की तरह लगातार गूंज रहा है. हवा में सुंदर पहाड़ी वृक्षों के पत्ते झूम रहे हैं जिनपर नये वर्ष की पार्टी के लिए रौशनी की झालरें भी लगा दी गयी हैं. कल हमें ‘मायोदिया’ देखने जाना है जो आठ हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित एक दर्रा है. 
क्रमशः

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