अंतर इक दिन बने प्रार्थना
उसके सिवा न कोई
जग में
उसकी ही ख़ुशबू
कण-कण में,
उससे ही प्रकटी
हर शै है
उसकी ही प्रतिमा
हर मन में !
ऐसा है वह, वैसा
है वह
जाने कितने रूप
बनाये,
दूर खुदा से अब
भी उतना
मंदिर-मस्जिद रोज
बनाये !
छिपी प्रीत है
भीतर गहरे
अंतर है सूना का
सूना,
अनजाना ही जग रह
जाये
हर सूं फैला जलवा
उस का !
पहली पुलक प्रेम
है उसका
प्रेम ही पूजा,
आराधना,
धीरे-धीरे लगे
महकने
उर एक दिन बने
प्रार्थना !
द्वार दिलों के रहें
न उढ़के,
प्रेम छलकता आता पल में,
कोमल सा अहसास
खुदा है
जाना जाता सदा
प्रेम में !
रतन अमोल छिपा
तकता है
ढूँढ ले कोई खोया
प्यार !
शब्द बड़े छोटे पड़
जाते,
मौन में बहती
मदिर बयार !
इश्वर की प्रतिमा रहे हर मन में तो प्रेम की सरिता बहती है चहुँ और ...
जवाब देंहटाएंसही कहा है दिगम्बर जी..आभार !
हटाएंस्वागत व आभार !
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