कितनी धूप छुए बिन गुजरी
कितना नीर बहा अम्बर से
कितने कुसुम उगे उपवन में,
बिना खिले ही दफन हो गयीं
कितनी मुस्कानें अंतर में !
कितनी धूप छुए बिन गुजरी
कितना गगन न आया हिस्से,
मुंदे नयन रहे कर्ण अनसुने
बुन सकते थे कितने किस्से !
कितने दिवस डाकिया लाया
कहाँ खो गये बिन बाँचे ही,
कितनी रातें सूनी बीतीं
कल के स्वप्न बिना देखे ही !
नहीं किसी की राह देखता
समय अश्व दौड़े जाता है,
कोई कान धरे न उस पर
सुमधुर गीत रचे जाता है !
बहुत प्यारी रचना
जवाब देंहटाएंसमय-समय की बात होती हैं
सही कहा आपने कविता जी, स्वागत व आभार !
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी !
हटाएंवाह! अतिसुंदर.
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार देवेन्द्र जी !
हटाएंसच है ...
जवाब देंहटाएंसमय का घोड़ा दौड़ता जाता है ... किसी के रोके नहीं रुकता ... बहुत कुछ जीवन में नहीं हो पता ... पर जो हो सके वो भी तो जीवन ही है ...
सही है जो हो सके वह भी तो जीवन है..जीवन के बाहर कुछ भी नहीं..पर हम ही प्रमाद और असमर्थता के कारण कई बार जीवन से दूर हो जाते हैं..आभार !
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जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 20 दिसंबर2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बहुत आभार पम्मी जी !
हटाएंवाहःह
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
स्वागत व आभार लोकेश जी !
हटाएंबहुत प्यारी रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार नीलू जी !
हटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना...
वाह्ह !!!!!!!! आदरणीय अनिता जी बहुत ही सरल शब्दों में बहुत ही सार की बात कर अनुपम रचना रच डाली आपने | मुझे एकदम पढ़कर बहुत ही अच्छी लगी | हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित करती हूँ आपको |
जवाब देंहटाएंमरहूम सईद ज़ाफरी साहब को एक विज्ञापन में सुना करता था -" समय के साथ चलिये".....आज आदरणीया अनीता जी की रचना भी कुछ उसी भाव को पुष्ट करती हुई हमसे बात करती है. उत्कृष्ट रचना. समय को समझना ही जीवन को समझना है. बधाई एवं शुभकामनायें .
जवाब देंहटाएंस्वागत व बहुत बहुत आभार रवीन्द्र जी !
हटाएंबहुत ही खूबसूरत अल्फाजों में पिरोया है आपने इसे... बेहतरीन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
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