भूटान की यात्रा- १
आज 'थिम्फू' में हमारा पहला दिन है. सुबह साढ़े छह बजे जब कोलकाता हवाई अड्डे पहुँचे,
तब तक ड्रुक एयर का काउन्टर नहीं खुला था. कुछ देर बाद हलचल आरम्भ हुई और औपाचारिक
कार्यविधियों के बाद नौ बजे जहाज ने उड़ान भरी. एक घंटे की आरामदायक यात्रा के बाद
भूटान के 'पारो' नामक स्थान पर पहुँचे, उस समय स्थानीय समय था साढ़े दस, यानि यहाँ की घड़ियाँ भारत की घड़ियों से आधा घंटा आगे हैं. हवाई अड्डा काफी खुला है और
इसकी साज-सज्जा किसी बौद्ध मन्दिर जैसी है. बाहर निकलने से पूर्व ही हमने मोबाईल
फोन में स्थानीय सिमकार्ड डलवा लिया था.
'मेक माय ट्रिप' की तरफ से गाइड एक बड़ी गाड़ी लेकर आया था. हम दोनों के अलावा एक बौद्ध दम्पति तथा उनकी
पुत्री, जो मेडिकल की छात्रा है, भी हमारे साथ थे. एक घंटे की सड़क यात्रा के
बाद हम भूटान की राजधानी 'थिम्फू' पहुंच गये. सहयात्रियों को उनके होटल में उतार कर हम 'मिगमार' नाम के होटल पहुँचे, जिसकी
दीवारें पीले रंग से रंगी हैं, सुंदर चित्र व बेलबूटों से सजी हैं. बाहर फूलों का
बगीचा है, और होटल काफी बड़ा है. दोपहर का भोजन हल्का व सुपाच्य था, कुछ देर
विश्राम करके हम स्थानीय बाजार देखने गये. यहाँ हस्तकला के सामानों से भरी अनेकों
दुकानें हैं.
आज दूसरे दिन हम 'थिम्फू'
के दर्शनीय स्थलों को देखने गये, उससे पूर्व सुबह जल्दी उठकर होटल की दायीं ओर
प्रातः भ्रमण के लिए निकले. यहाँ पैदल चलने वाले यात्रियों के लिए काफी चौड़े मार्ग
बने हैं, जिसपर सुबह-सुबह कुछ लोग दौड़ भी रहे थे. हवा ठंडी थी, जैकेट को कान तक
ढककर हम चारों ओर के सुन्दर पर्वतों को देखते हुए आगे बढ़ते रहे. साढ़े नौ बजे गाइड
'पेलडन' के साथ ड्राइवर अपनी गाड़ी लेकर आ गया. हमारा पहला पड़ाव था, राष्ट्रीय
‘आर्ट एंड क्राफ्ट सेंटर’. गाइड ने बताया कक्षा दस उत्तीर्ण करने के बाद कोई भी
विद्यार्थी इस संस्था में आकर चित्रकला, मूर्ति कला, कढ़ाई, काष्ठ कला आदि सीख सकता
है. कुछ कोर्स तीन वर्ष के हैं तथा कुछ कोर्स छह वर्ष के लिए हैं. यहाँ से दक्षता
प्राप्त करने के बाद छात्र-छात्राएं अपना निजी व्यवसाय आरम्भ कर सकते हैं. भूटान
की हस्तकला विश्वप्रसिद्ध है. बौद्ध चित्रकला तथा वास्तुकला अपनी सूक्ष्म कारीगरी,
सुंदर आकृतियों तथा रंगों के लिए जानी जाती है. हमने कई छात्रों को काम करते हुए
देखा. इसके बाद हम बौद्ध साधिकाओं की एक संस्था देखने गये. जहाँ युवा तथा वृद्ध
साधिकाएँ तथा बौद्ध साधक भी मन्त्र जाप आदि धार्मिक क्रियाकलापों में व्यस्त थे.
वहाँ का वातावरण एक विचित्र उल्लास से भरा था. कुछ वृद्ध भिक्षुओं की तस्वीरें
हमने उतारीं, उनके मुस्कुराते हुए चेहरे भूटान के बढ़े हुए हैप्पिनेस इंडेक्स की गवाही दे रहे थे. टेक्स्टाईल म्यूजियम तथा
क्राफ्ट बाजार हमारे अगले पडाव थे.
क्रमशः
रोचक विवरण।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार विश्वमोहन जी !
हटाएंसुन्दर वर्णन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी !
हटाएं
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (03-06-2019) को
" नौतपा का प्रहार " (चर्चा अंक- 3355) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
…
अनीता सैनी
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार जून 04, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार यात्रा संस्मरण सुंदर, धारा प्रवाहता और रोचकता लिये ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर वर्णन।
जवाब देंहटाएंपिछले वर्ष दसवीं हिंदी की किताब में एक पाठ था - "भूटान की राजधानी थिंफू" वह पढ़ने पढ़ाने के बाद से ही भूटान के बारे में और जानने की उत्सुकता बढ़ी हुई है। आगे की यात्रा के बारे में जरूर पढ़ना चाहूँगी।
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