भूटान की यात्रा -२
भूटान में पर्यटकों
का आना १९७४ में आरम्भ हुआ, जब यहाँ के चौथे राजा जिग्मी सिंग्वाई वांगचुक का
राज्याभिषेक हुआ था. इन्होने ही देश को ग्रॉस नेशनल हैप्पिनेस GNH का सिद्धांत दिया. इस सिद्धांत के अनुसार देश के आर्थिक
विकास की तुलना में लोगों की ख़ुशी ज्यादा जरूरी है. भूटान की विकास की
परिकल्पना के आधार पर यूएन ने २० मार्च को 'विश्व प्रसन्नता दिवस' भी घोषित किया है. आज भूटान में वर्ष भर पर्यटक आते हैं, यहाँ का
प्राकृतिक वातावरण, शुद्ध हवा और सुन्दरता सभी को आकर्षित करती है. साठ वर्ष की आयु
होने पर चौतींस वर्षों के शासन के बाद राजा ने स्वयं ही अपने पुत्र को राजगद्दी पर
बैठा दिया. पांचवे राजा जिग्मी खेसर वाम्ग्येल एक दार्शनिक, सुधारक तथा आध्यात्मिक
व्यक्ति थे, जिन्होंने देश में कितने ही सुधार कार्य किये. २००८ में प्रजातंत्र की
स्थापना करके जनता को देश के विकास में भागीदार ही नहीं बनाया, आत्मनिर्भर बनाया. भूटान
की जनता इन्हें ईश्वर की तरह मानती है. भूटान ही विश्व में एकमात्र ऐसा देश है
जहाँ लोकतंत्र के लिए कोई आन्दोलन नहीं हुआ, जनता को इसके योग्य बनाया गया और
उन्हें उपहार स्वरूप इसे प्रदान किया गया.
आज थिम्फू में तीसरा
दिन है, प्रातः भ्रमण, प्राणायाम और स्वादिष्ट नाश्ता करने के बाद हम दर्शनीय स्थल
देखने निकले. ड्राइवर नीमा अपनी नई टोयोटा के साथ मौजूद था. निकट स्थित एक अन्य
होटल से तीन सहयात्रियों को लेकर हम सबसे पहले भूटान की अति प्राचीन मोनेस्ट्री
जिसे यहाँ की भाषा में द्जोंग कहते हैं, देखने गये. मठ के मुख्य कक्ष में संस्थापक
की विशाल मूर्ति है. कक्ष को रंगीन झंडियों, चित्रों, पुष्पों आदि से सजाया गया
था. एक कक्ष में बुद्ध की विशाल मूर्ति भी वहाँ पर थी. आज बुद्ध का महा परिनिर्वाण
दिवस होने के कारण लोगों का एक बड़ा हुजूम दर्शन करने आया था. हमने भी परिक्रमा में
भाग लिया. सारा वातावरण उत्सव व प्रसन्नता से भरा था. कुछ लडकियाँ और लड़के सभी को फलों
के रस के पैकेट्स मुफ्त बांट रहे थे. इसके बाद हम आधुनिक भूटान के निर्माता तीसरे
राजा के स्मरण में बने स्मारक को देखने गये. वहाँ भी हजारों भूटानी अपने-अपने
परिवार सहित पूजा कर रहे थे. सभी अपनी पारंपरिक वेश भूषा में थे. पुरुषों के
वस्त्र को घो तथा महिलाओं की पोषाक को यहाँ कीरा कहते हैं. कुछ बौद्ध साधक पाठ कर
रहे थे. यहाँ घंटो तक लोगों की भीड़ आती रही और परिक्रमा बिना रुके चलती रही.
अगला पड़ाव था 'बुद्धा
पॉइंट' जो एक विशाल पर्वत को काटकर पन्द्रह वर्ष पूर्व ही बनना आरम्भ हुआ है.
हांगकांग. चीन तथा सिंगापुर की सहायता से बना यह विशाल स्थल दूर से ही नजर आता है.
लोगों की विशाल भीड़ यहाँ भी थी. दोपहर के भोजन के बाद हम 'टाकिन जू' देखने गये.
बकरी का सिर और बैल का धड़ मिलाकर जैसे यह अद्भुत प्राणी बना है. इसके जन्म की
अनोखी कथा यहाँ प्रचलित है. होटल के निकट ही एक बुद्धा पार्क में कुछ समय बिताकर
हम होटल लौट आये. कल सुबह पुनाखा के लिए रवाना होना है.
क्रमशः
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