मंगलवार, जून 25

गीत कोई कसमसाता



गीत कोई कसमसाता



नील नभ के पार कोई
मंद स्वर में गुनगुनाता,
रूह की गहराइयों में
गीत कोई कसमसाता !

निर्झरों सा कब बहेगा
संग ख़ुशबू के उड़ेगा,
जंगलों का मौन नीरव
बारिशों की धुन भरेगा !

करवटें ले शब्द जागे
आहटें सुन निकल भागे,
हार आखर का बना जो
बुने किसने राग तागे !

गूँजता है हर दिशा में
भोर निर्मल शुभ निशा में,
टेर देती धेनुओं में
झूमती पछुआ हवा में !

लौटते घर हंस गाते
धार दरिया के सुनाते,
पवन की सरगोशियाँ सुन
पात पादप सरसराते !

गीत है अमरावती का
घाघरा औ' ताप्ती का, 
कंठ कोकिल में छुपा है
प्रीत की इक रागिनी का !


11 टिप्‍पणियां:

  1. अद्भुत...नमन आपकी लेखनी को..

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  2. सादर नमस्कार!
    आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार जून 27, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. आपकी भावनायें एकदम नि:शब्द कर गयीं नमन

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  4. वाह !दी जी बेहतरीन 👌👌
    प्रणाम
    सादर

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  5. आहा ..अनुपम गीत . बहुत ही सुन्दर ..पढ़कर अभिभूत हूँ . बार बार पढ़ रही हूँ .शब्द और भावों का ऐसा संयोजन कम मिलता है .नत हूँ आपकी लेखनी के आगे

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    1. सुस्वागत है आपका गिरिजा जी, आपकी इस सुंदर प्रतिक्रिया के लिए मैं भी नत हूँ, आभार !

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  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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