गीत कोई कसमसाता
नील नभ के पार
कोई
मंद स्वर में
गुनगुनाता,
रूह की गहराइयों
में
गीत कोई कसमसाता
!
निर्झरों सा कब
बहेगा
संग ख़ुशबू के
उड़ेगा,
जंगलों का मौन
नीरव
बारिशों की धुन
भरेगा !
करवटें ले शब्द
जागे
आहटें सुन निकल
भागे,
हार आखर का बना
जो
बुने किसने राग
तागे !
गूँजता है हर
दिशा में
भोर निर्मल शुभ
निशा में,
टेर देती धेनुओं
में
झूमती पछुआ हवा
में !
लौटते घर हंस
गाते
धार दरिया के
सुनाते,
पवन की सरगोशियाँ
सुन
पात पादप सरसराते
!
गीत है अमरावती
का
घाघरा औ' ताप्ती का,
कंठ कोकिल में
छुपा है
प्रीत की इक
रागिनी का !
अद्भुत...नमन आपकी लेखनी को..
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंसादर नमस्कार!
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार जून 27, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बहुत आभार !
हटाएंआपकी भावनायें एकदम नि:शब्द कर गयीं नमन
जवाब देंहटाएंवाह !दी जी बेहतरीन 👌👌
जवाब देंहटाएंप्रणाम
सादर
स्वागत व आभार अनीता जी !
हटाएंआहा ..अनुपम गीत . बहुत ही सुन्दर ..पढ़कर अभिभूत हूँ . बार बार पढ़ रही हूँ .शब्द और भावों का ऐसा संयोजन कम मिलता है .नत हूँ आपकी लेखनी के आगे
जवाब देंहटाएंसुस्वागत है आपका गिरिजा जी, आपकी इस सुंदर प्रतिक्रिया के लिए मैं भी नत हूँ, आभार !
हटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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