मंगलवार, सितंबर 3

झक्क उजाले सा



झक्क उजाले सा


रेशमी धूप सा जो सहलाता है अंतर
वही सूरज पांव मरुथलों में जलाता है

मीठी सुवास सा बहलाता है जो मन को
नुकीले पथ सा वही प्रेम चुभे जाता है

झक्क उजाले सा जो भर देता है आकाश
घन अँधेरे का सबब वही तो बन जाता है

सिवाय हँसने के क्या कहें इन अदाओं पर
 दे एक हाथ दूजे हाथ लिए जाता है


10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में " मंगलवार 3 सितम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. वाह !बेहतरीन सृजन आदरणीया
    सादर

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  3. ये तो रीत है ... सांसें दे कर भी तो वो सांसें ले लेता है ...
    चक्र है जीवन का जो निरंतर रहता है ...
    बहुत कमाल की पंक्तियाँ ...

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    1. वाकई जीवन एक लेन-देन ही तो है..स्वागत व आभार !

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