शुक्रवार, सितंबर 20

जैसे एक पवन का झोंका



जैसे एक पवन का झोंका


तितली, बादल, फूल, आसमां
उड़ते, बनते, खिलते यकसां,
देख-देख मुस्काए कोई
दिल में रहता शावक जैसा !

पुलक भरा है जोश भरा भी
ढहा दिए अवरोध सभी ही,
खिले कमल सा रहे प्रफ्फुलित
तज दी उर की आह कभी की !

जैसे एक पवन का झोंका
या कोई बादल का टुकड़ा,
तिरता नभ में हौले हौले
तृण भर भी आधार न पकड़ा !

मस्ती की गागर हो जैसे
हरियाली सा पसरे ऐसे, 
इक सुवास मदमस्त करे जो
मन बौराए भला न कैसे !

खिलना ही होगा हमको भी
राह देखता भीतर कोई,
मिलना होगा उससे जाकर
अंतर जिसकी याद समोई !

11 टिप्‍पणियां:

  1. अंदरूनी परमात्मा को क्या क्या रंग दिए हैं आपने
    ठीक वैसा ही बाहर से होना चाहिए इंसा को।
    वाह।

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  2. इतना सुंदर पढ़कर मन बौराये न कैसे भला । अति सुंदर ।

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  3. जिसकी याद अंतस में हो उसे तो पल पल मिलने का मन करता है ...
    दौड़ता है उसी तरफ ... जीवन की रीत भी यही है ... संतुष्टि और जीवन की इति भी इसी मिलन में है ...

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    1. कविता की इतनी सुंदर व्याख्या के लिए आभार...

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