नाविक भी हो मीत पुराना
सुख का सागर सभी चाहते
दुःख के ग्राह वहीं रहते हैं,
नैया एक अगर पा जाएँ
उस तट पहुँचें यह कहते हैं !
हो नाव में सुराख़ न कोई
नाविक भी हो मीत पुराना,
लहरों पर उठते-गिरते ही
कट जायेगा सफर सुहाना !
देह ही तरणि मन है नाविक
अब सब जांच परख लें ऐसे,
मिले प्रकृति से इसी काज हित
दुःख जन्माये इनसे कैसे ?
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (9-2-21) को "मिला कनिष्ठा अंगुली, होते हैं प्रस्ताव"(चर्चा अंक- 3972) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत आभार !
हटाएंदेह ही तरणि मन है नाविक
जवाब देंहटाएंअब सब जांच परख लें ऐसे,
मिले प्रकृति से इसी काज हित
दुःख जन्माये इनसे कैसे ?
अत्यंत उत्कृष्ट सृजन..।
नमन आपको आदरणीया 🙏
स्वागत व आभार डॉ वर्षा !
हटाएंहो नाव में सुराख़ न कोई नाविक भी हो मीत पुराना,लहरों पर उठते-गिरते ही कट जायेगा सफर सुहाना ! बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति, आदरणीया अनीता जी
जवाब देंहटाएंभारतीय साहित्य एवं संस्कृति
स्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुंदर
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