सोमवार, फ़रवरी 8

नाविक भी हो मीत पुराना

नाविक भी हो मीत पुराना


सुख का सागर सभी चाहते 

दुःख के ग्राह वहीं रहते हैं,

नैया एक अगर पा जाएँ 

उस तट पहुँचें यह कहते हैं !


हो नाव में सुराख़ न कोई 

नाविक भी हो मीत पुराना,

लहरों पर उठते-गिरते ही 

कट जायेगा सफर सुहाना !


देह ही तरणि मन है नाविक 

अब सब जांच परख लें ऐसे, 

मिले प्रकृति से इसी काज हित

दुःख जन्माये इनसे कैसे ?

 

7 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (9-2-21) को "मिला कनिष्ठा अंगुली, होते हैं प्रस्ताव"(चर्चा अंक- 3972) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा




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  2. देह ही तरणि मन है नाविक
    अब सब जांच परख लें ऐसे,
    मिले प्रकृति से इसी काज हित
    दुःख जन्माये इनसे कैसे ?

    अत्यंत उत्कृष्ट सृजन..।
    नमन आपको आदरणीया 🙏

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  3. हो नाव में सुराख़ न कोई नाविक भी हो मीत पुराना,लहरों पर उठते-गिरते ही कट जायेगा सफर सुहाना ! बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति, आदरणीया अनीता  जी
     भारतीय साहित्य एवं संस्कृति

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