ब्रह्म मुहूर्त का कोरा पल
सोये हैं अभी पात वृक्ष के
स्थिर जैसे हों चित्रलिखित से
किन्तु झर रही मदिर सुवास
छन-छन आती है खिड़की से
निकट ही कंचन मौन खड़ा है
मद्धिम झींगुर गान गूँजता
पूरब में हलचल सी होती
नभ पर छायी अभी कालिमा
एक शांत निस्तब्ध जगत है
ब्रह्म मुहूर्त का कोरा पल
सुना, देवता भू पर आते
विचरण कर बाँटते अमृत
कोई हो सचेत पा लेता
स्वर्गिक रस आनंद सरीखा
जैसे ही सूरज उग आता
पुनः झमेला जग का जगता
बहुत सुन्दर चित्रण।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (2-2-21) को "शाखाओं पर लदे सुमन हैं" (चर्चा अंक 3965) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत आभार !
हटाएंब्रह्म मुहूर्त का सुकून भरा चित्र खींचा है आपने।
जवाब देंहटाएंइस मुहूर्त में वातारण में दिव्यता का आभास और नये चैतन्य का संचार होता है -सुन्दर चित्र उकेरा है आपने!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंएक शांत निस्तब्ध जगत है
जवाब देंहटाएंब्रह्म मुहूर्त का कोरा पल
सुना, देवता भू पर आते
विचरण कर बाँटते अमृत
कोई हो सचेत पा लेता
स्वर्गिक रस आनंद सरीखा
जैसे ही सूरज उग आता
पुनः झमेला जग का जगता..ब्रम्ह मुहूर्त की खूबसूरत बेला में जीवन को गति देती अभिव्यक्ति..
बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर
आप सभी सुधीजनों का हृदय से स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंधुंधलाई प्रतीति में जो अधिक स्पष्ट दिखाई दे वही तो जागरण है । ब्रह्म मुहूर्त एवं संध्या काल वही क्षण है ।
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