सच में
वह जो कभी नहीं बदलता
न घटता तिल मात्र
न बित्ता भर भी बढ़ता
वही तो हम हैं असल में
खींचतान कर जिसे बड़ा किए जा रहे हैं
वह नहीं
कभी इसकी कभी उसकी
टांग खींचते
या अपना क़द दूसरों की नज़रों में ढूँढते
बड़ा बनने की कोई वजह नहीं छोड़ते
छोटी-छोटी बातों में बड़प्पन झलकाते हैं
पर हम बड़े हैं ही
यह राज समझ नहीं पाते हैं
जो आकाश की तरह रिक्त और अनंत है
जो महासागरों की तरह विस्तीर्ण और गहरा है
ऐसा अथाह स्वरूप हमारा है
कृष्ण ने अर्जुन को इसी ज्ञान से संवारा है !
बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना .
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत गहन और चिन्तन परक सृजन ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंसुंदर सकारात्मक ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार कुसुम जी !
हटाएंअपने ही स्वरूप को भुला कर हम न जाने क्या हो जाते हैं। स्मरण कराते रहिए हमें।
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