बन जाओ गर राग प्रेम का
खुद से दूर हुआ है जो भी
तुझसे दूर रहा करता है,
प्रेमी ही यदि खोया हो तो
प्रियतम कहाँ मिला करता है !
बजा रहा है कान्ह बाँसुरी
गोपी जन को याद दिलाने,
बन जाओ गर राग प्रेम का
सुर उसका गूँजा करता है !
गुरुओं की बातें सच्ची हैं
कोई हमसा भीतर रहता,
हरदम कोई आँख गड़ाए
सुबहो-शाम तका करता है !
जिससे ये श्वासें चलती हैं
उससे ही अनजान रहा मन,
उससे आँखें चार हुईँ कब
सारा जग घूमा करता है !
नित नूतन है कान्ह सलोना
बहता जैसे पावन पानी,
हर लेता है पीर हिया की
जो भी ग्वाल सखा बनता है !
अहा !!! कृष्णमय हो गए पढ़ते पढ़ते ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंजिससे ये श्वासें चलती हैं
जवाब देंहटाएंउससे ही अनजान रहा मन,
उससे आँखें चार हुईँ कब
सारा जग घूमा करता है !....बहुत सुंदर।
स्वागत व आभार !
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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जवाब देंहटाएंसुन्दर भक्ति भीनी प्रस्तुति!
"प्रेमी ही यदि खोया हो तो
प्रियतम कहाँ मिला करता है !" ये पंक्ति सबसे अच्छी लगी
स्वागत व आभार !
हटाएंवाह वाह!भावपूर्ण अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (25-05-2022) को चर्चा मंच "पहली बारिश हुई धरा पर, मौसम कितना हुआ सुहाना" (चर्चा अंक-4441) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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बहुत बहुत आभार शास्त्री जी !
हटाएंजिससे ये श्वासें चलती हैं
जवाब देंहटाएंउससे ही अनजान रहा मन,
उससे आँखें चार हुईँ कब
सारा जग घूमा करता है !
वाह!!!
बहुत ही लाजवाब..
भक्तिमय सृजन
स्वागत व आभार सुधा जी !
हटाएंवाह अनीता जी, टेढ़े कान्हा की टेढ़ी बातें...गोपियों को तो यूं भी धनुष बनाए रहती हैं...संभवत: आपके इष्ट हैं कृष्ण...#जय_राधारमणलाल_जू
जवाब देंहटाएंकान्हा की बातें तो बिलकुल सीधी हैं, शायद हमारा मन ही उस जल की तरह है जिसमें पड़कर लकड़ी टेढ़ी दिखती है
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंजिससे ये श्वासें चलती हैं
जवाब देंहटाएंउससे ही अनजान रहा मन,
उससे आँखें चार हुईँ कब
सारा जग घूमा करता है !
बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
स्वागत व आभार विकास जी!
हटाएंप्रार्थना उमग रही है हृदय में... प्रेम राग बनने के लिए। आप यूँ ही हृदय में सदा उमगाते रहिए दिव्य भावों को।
जवाब देंहटाएंआप तो पहले से ही प्रेम की रागिनी बन चुकी हैं, आभार!
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