रविवार, जून 18

गर्मियों की शाम सुंदर


गर्मियों की शाम सुंदर


छू रही धरा को शीतल ग्रीष्म की महकी पवन

छा गए गगन पे देखो झूमते से श्याम घन !


दिवस की अंतिम किरण भी दूर सोने जा रही

सुरमई संध्या सुहानी कहीं कोकिल गा रही !


कुछ पलों पहले हरे थे वृक्ष काले अब लगें

बादलों के झुण्ड जाने क्या कथा खुद से कहें !


छू रही बालों को आके करती अठखेलियाँ

जाने किसे छू के आयी लिये रंगरेलियाँ !


चैन देता है परस प्यास अंतर में जगाता

दूर बैठा चितेरा कूंची नभ पर चलाता !


झूमते पादप हँसें कलियाँ हवा के संग तन

नाचते पीपल के पात खिलखिला गुड़हल मगन !


गर्मियों की शाम सुंदर प्रीत के सुर से सजी

घास कोमल हरी मानो रेशमी चादर बिछी !


है अँधेरा छा गया अब रात की आहट सुनो

दूर हो दिन की थकन अब नींद में सपने बुनो !


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