इक लहर उठी श्वासों की
ओउम् की पुकार उठी
हुई जागृत रग-रग तन की,
रेशा-रेशा लहराया
मन की हर विस्मृति टूटी !
हुई जागृत रग-रग तन की,
रेशा-रेशा लहराया
मन की हर विस्मृति टूटी !
उड़ चली डोर श्वासों की
मन ह्रदय पतंग हो उठा,
तोड़ सभी तन के बंधन
चिदाकाश में उड़ा किया !
मन ह्रदय पतंग हो उठा,
तोड़ सभी तन के बंधन
चिदाकाश में उड़ा किया !
इक लहर उठी श्वासों की
मानस धवल हंसा हुआ,
मृदु भावों के सरवर में
वह अनवरत तिरता रहा !
मानस धवल हंसा हुआ,
मृदु भावों के सरवर में
वह अनवरत तिरता रहा !
इक पटल बना श्वासों का
घिस-घिस कर चमकाया मन
जाग उठा चिन्मय झिलमिल
झलकाये अंतर दर्पण !
घिस-घिस कर चमकाया मन
जाग उठा चिन्मय झिलमिल
झलकाये अंतर दर्पण !
पुल बना सहज श्वासों का
जब मानस की धारा पर,
परम अनंत की खोज में
चल पड़ा ह्रदय यायावर !
जब मानस की धारा पर,
परम अनंत की खोज में
चल पड़ा ह्रदय यायावर !
दीप जलाया श्वासों का
हुआ नूर भीतर-बाहर,
मन माणिक जगमगाया
अकम्पित उजली लौ पर !
हुआ नूर भीतर-बाहर,
मन माणिक जगमगाया
अकम्पित उजली लौ पर !
माला गुंथी श्वासों की
शुभ सुमनों से ओंउम् के,
प्रियतम की खोज में मनस
ले चला थाम हाथों में !
शुभ सुमनों से ओंउम् के,
प्रियतम की खोज में मनस
ले चला थाम हाथों में !
डाली समिधा श्वासों की
हवन कुंड मन-अंतर में ,
परम सत्य तब प्रकट हुआ
ओंउम्.. ओंउम्... ओंउम्.. में !
हवन कुंड मन-अंतर में ,
परम सत्य तब प्रकट हुआ
ओंउम्.. ओंउम्... ओंउम्.. में !
सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार जोशी जी !
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी !
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंअनायास ही मुझे कबीर की कुछ पंक्तियां याद आ गयी...
मोको कहाँ ढूँढे रे बंदे, मैं तो तेरे पास हूँ
ना मैं देवल ना मैं मस्जिद, न काबे कैलास में।
ना तो कौनो क्रिया कर्म में, नहीं योग बैराग में
खोजी होय तो तुरतै मिलिहौं, पलभर की तलास में
कहै कबीर सुनो भई साधो,बस स्वांसों की श्वास में।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १९ दिसम्बर २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार श्वेता जी, कबीर के जिस पद का अपने ज़िक्र किया है, वह मुझे भी अति प्रिय है, बुद्ध ने भी अनापान यानी श्वासों के आवागमन पर ध्यान करने की साधना सिखाई है। संत कहते आये हैं, हमारी श्वासों में ही सृष्टि का राज है
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंआध्यात्मिकता की लौ के निकट ले जाता है आपका सृजन ।उत्कृष्ट भावाभिव्यक्ति । सादर नमन ।
जवाब देंहटाएंअति सुंदर शब्दों में आपने प्रतिक्रिया व्यक्त की है। स्वागत व आभार मीना जी !
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