बुधवार, दिसंबर 27

मन कहाँ ख़ाली हुआ है

मन कहाँ ख़ाली हुआ है 


यह ग़लत है, वह ग़लत है 

ग़लत है सारा जहाँ, 

बस सही हम जा रहे, यह 

राह रोके क्यों खड़ा ?


क्यों नहीं उड़ते गगन में 

देर अब किस बात की, 

थी तैयारी इस पल की 

बात क्या फिर राज की !


ढेर बोझा है दिलों पर 

अनगिनत शिकवे छिपे, 

मन कहाँ ख़ाली हुआ है 

तीर कितने हैं बिंधे !


आग भी जलती, वहीं है  

प्रीत का दरिया छिपा, 

जाग कोई देखता, कब  

तमस में मन आ घिरा !


10 टिप्‍पणियां:

  1. यह ग़लत है, वह ग़लत है
    ग़लत है सारा जहाँ,
    राह तो यही रोकता है
    आभार
    सादर वंदे

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  2. वाह!अनीता जी ,बहुत खूब। सारे जहाँ की चिंता छोड़ दूर गगन में उड़ान जाना है बस......

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    1. उड़ने की कला आ जाये तो फिर क्या बाक़ी रह जाता है ! स्वागत व आभार शुभा जी !

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  3. बहुत सुन्दर ... खुला गगन हो मुक्त गगन हो ...

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