एकांत
उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव तक
धरा के इस छोर से उस छोर तक
कोई दस्तक सुनाई नहीं देती
जब तक सुनने की कला न आये
वह कर्ण न मिलें
सुन लेते हैं जो मौन की भाषा
जहां छायी है
अटूट निस्तब्धता और सन्नाटा
वहीं गूंजता है
अम्बर के लाखों नक्षत्रों का मौन हास्य
और चन्द्रमा का स्पंदन
मिट जाती हैं दूरियाँ
हर अलगाव हर अकेलापन
जब मिलता है उसका संदेशा
एक अनमोल उपहार सा
और भरा जाता है एकांत
मृदुल प्यार सा !
सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति,
जवाब देंहटाएंमौन की भाषा गूढ़
समझे न पाए मूढ़...।
सादर
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार २३ अप्रैल २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार श्वेता जी !
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंमौन को साधना भी कला है …, बहुत सुन्दर भावों का निरूपण ।अत्यंत सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार मीना जी !
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