बुधवार, फ़रवरी 9

सच

सच  

यहाँ अपना कुछ भी नहीं है 

काया यह कुदरत से मिली   

मन माया भी जिसमें खिली 

भाषा ज्ञान मिला जगत से 

जग से ही पाया जब सब कुछ

यहाँ खोना कुछ भी नहीं है 

बस एक अहसास है, होने का 

वह कौन है ? कोई क्या माने 

कभी रस धार मन में फूटती सी 

कहाँ हैं स्रोत ? कोई क्या जाने 

कभी इक दर्द भी दिल में समाता  

जहाँ में दुःख बहुत देखा न जाता 

 हुआ है मौन मन  ! अब क्या कहे यह 

अजाना है सफर !  जाना किधर ! 

न कोई यह बताता 

इशारों में ही, सूनी राह पर, लिए है जाता 

मगर हर बार गिरने से भी वह ही बचाता 

फ़िकर किसको ? जब पाना कुछ भी नहीं है 

यहाँ अपना कुछ भी नहीं है !


24 टिप्‍पणियां:

  1. और सब लोग हर चीज़ को अपना मान बैठते हैं ।
    अच्छी रचना ।

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  2. निराशा भाव क्यों ? जीवन में आशा मिली हैं तो निराशा भी मिलेगी , जीना हँसते हुए हमारा फ़र्ज़ है न्याय है प्रकति के साथ ! शुभकामनायें आपको

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    1. अपने प्रश्न का जवाब आपने स्वयं ही अगली पंक्ति में दे दिया है, स्वागत व आभार!

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  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.02.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4337 में दिया जाएगा| आप चर्चा मंच ब्लॉग पर जरूर पहुँचेंगे, ऐसी आशा है|
    धन्यवाद
    दिलबाग

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  4. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 10 फ़रवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  5. फ़िकर किसको ?
    जब पाना कुछ भी नहीं है
    यहाँ अपना कुछ भी नहीं है !
    हृदयस्पर्शी सृजन ।

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  6. यहाँ अपना कुछ भी नहीं है !

    तब तो अंधे कुएँ में दौड़ जारी है

    -उत्तम रचना

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    1. जो अपना नहीं है उसके लिए दौड़ जारी है और जो अपना हो सकता था उसके प्रति हम आँख मूँदे रहते हैं

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  7. वास्तविक सच यही है कि यहाँ अपना कुछ भी नहीं है।

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    1. सही कह रहे हैं आप और यह एक तथ्य है, कोई क्षणिक वैराग्य नहीं

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  8. मन को छूती सुंदर रचना हमेशा की तरह ।

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  9. अध्यात्म भाव को मुखरित करता सार्थक दर्शन।
    सुंदर सृजन।

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  10. अपना कुछ नहीं और सभी कुछ तो अपना है -बस मन की स्थिति पर निर्भर है.विरक्ति से दुनिया नही चलती कहीं तो जुड़ना ही पड़ेगा.संसार में रहना है तो कहाँ तक भागेगा कोई!

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    1. कितना सही कहा है आपने जो यह जान लेता है कि अपना कुछ भी नहीं है, तत्क्षण सब कुछ उसका अपना हो जाता है, फिर कोई भेद नहीं रहता

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  11. जब कुछ अपना नहीं तो खोने की चिंता क्यों ...
    पर मानव मन को संझाना बह्जुत मुश्किल है ... आध्यात्म ही एक रास्ता है ...

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    1. सही कहा है आपने, अध्यात्म ही इन प्रश्नों के हल अपने भीतर छिपाये है

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  12. प्रिय अनीता जी, विरक्त भावों से सजी आपकी रचना पढ़कर किसी की लिखी पंक्तियां याद आईं----
    बरसों का सामान कर लिया, पल की खबर नहीं!!!!!
    बहुत बहुत आभार और बधाई 🙏🌷🌷

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