पीड़ा
पीड़ा अभिशाप नहीं
वरदान बन जाती है
जब सह लेता है कोई
धैर्य और दृढ़ता से
अपरिहार्य है पीड़ा
यदि देह को सताती है
अधिक से अधिक मन तक
हो सकती है उसकी पहुँच
पर 'स्वयं' अछूता रह जाता है
पीछे खड़ा
वही असीम शक्ति देता है
वह स्रोत है
वही लक्ष्य भी
हर संदेह से परे
जहाँ मिलेगा परम आश्रय
मिलता आया है जीवन भर
शांति व आनंद के क्षणों में
सुख-दुख के प्रसंगों में
वह संबल भरता है भीतर
पीड़ा तप है
व्यर्थ नहीं है यह
इसका प्रयोजन है
शायद यह आत्मशोधन है !
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 18 जुलाई 2024 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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बहुत बहुत आभार रवींद्र जी !
हटाएंसुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंपीड़ा तप है
जवाब देंहटाएंव्यर्थ नहीं है यह
इसका प्रयोजन है
शायद यह आत्मशोधन है ! बहुत सत्य है किसी भी तरह की पीड़ा सहने के बाद वह व्यर्थ नहीं जाती, आदरणीया शुभकामनाएँ
स्वागत व आभार मधुलिका जी !
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