गंध झरे जिससे कोमल
जीवन के झुलसाते पथ पर
मनोहारी शीतल इक छाँव है,
सूने कँटीले इस मार्ग पर
सुंदर सलोना सा ठाँव है !
सागर की चंचल लहरों में
नौका को भी थामे रखता,
हर इक बार भटकता राही
पा ही जाता एक गाँव है !
कोई कभी अनाथ हुआ कब
वह पग-पग साथ निभाता है,
कैसे जीना इस जीवन में
ख़ुद आकर सदा सिखाता है !
कदमों में गति वही भरे है
श्वासों में बनकर प्राण रहा,
नहीं कभी कोई भय व्यापे
अंतर में दृढ़ विश्वास भरा !
तेरे होने से ही हम हैं
तेरे कदमों में आये हैं,
गंध झरे जिससे कोमल
वे मौन गीत ही गाये हैं !
बेहद सुंदर शब्द संयोजन, अध्यात्मिक भावों से परिपूर्ण बहुत मनभावन रचना।
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उसपर विश्वास अडिग जब हो
पथ से फिर कौन डिगा सकता है।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार २ जुलाई २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार श्वेता जी !
हटाएंव्वाहहह
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
सादर
स्वागत व आभार यशोदा जी !
हटाएंएक शाश्वत शक्ति की अवधारणा को बलवती करती ...गजब पंक्तियां हैं कि ''कोई कभी अनाथ हुआ कब
जवाब देंहटाएंवह पग-पग साथ निभाता है,
कैसे जीना इस जीवन में
ख़ुद आकर सदा सिखाता है ''...वाह अनीता जी
स्वागत व आभार अलकनंदा जी !
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंकोई कभी अनाथ हुआ कब
जवाब देंहटाएंवह पग-पग साथ निभाता है,
कैसे जीना इस जीवन में
ख़ुद आकर सदा सिखाता है !
बस इतनी अनुभूति हो जाय और सदैव स्मरण रहे त़ कोई दुखी ही ना हो ।
घट घट में रहकर भी अनुभूति से परे...यह भी उसी की लीला है ।
लाजवाब सृजन सदा की तरह...
स्वागत व आभार सुधा जी !
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