सोमवार, जुलाई 8

जीवन सा हो मरण भी सुंदर

जीवन सा हो मरण भी सुंदर

भरे न उर ऊँची उड़ान जब  

बरबस बहे न प्रेमिल सरिता, 

 पाँवों में थिरकन न समाये  

जीवन वन सूना सा रहता !


एक मोड़ आये जब ऐसा 

रुखसत पूर्ण ह्रदय से ले लें, 

जीवन को भरपूर जी लिया 

अब स्वयं ही मृत्यु पथ चुन लें !


गहन दुर्दम निद्रा है मृत्यु 

 जीवन सा हो मरण भी सुंदर,

अंतर  का अवसाद मिटाने  

मिला सभी को रहने का घर !


जान लिया हर लक्ष्य जगत का 

जो पाना था पाया हमने, 

पढ़ ही डाले जितने भी थे 

ख़ुशियों और गमों के किस्से !


बने कृतज्ञ इस अस्तित्त्व के 

धीमे से हम आँख मूँद लें, 

जीवन ने कितना कुछ सौंपा 

अब अंतिम ऊँचाई पा लें !


मृत्यु सभी भेदों  से ऊपर 

राजा-रंक सभी मरते हैं, 

खेल ख़त्म हो जाते इसमें 

व्यर्थ मनुज इससे डरते हैं !


जीने की जो कला सीख ले 

सहज मरण के पार हो गया, 

देह और मन के ऊपर जा 

ख़ुद का जब दीदार हो गया !


17 टिप्‍पणियां:

  1. आहा, जीवन का सत्य उकेरती अति सुंदर रचना,आपकी आध्यात्मिक रचनाओं का जवाब नहीं।
    सस्नेह।
    सादर।
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार ८ जुलाई २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    उत्तर
    1. जी नमस्ते,
      आपकी लिखी रचना मंगलवार ९ जुलाई २०२४ के लिए साझा की गयी है
      पांच लिंकों का आनंद पर...
      आप भी सादर आमंत्रित हैं।
      सादर
      धन्यवाद।

      हटाएं
    2. बहुत बहुत आभार श्वेता जी !

      हटाएं
  2. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना

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  3. बहुत ही सुन्दर सार्थक जीवन के सत्य को अभिव्यक्त करती रचना
    सादर

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  4. जीने की जो कला सीख ले

    सहज मरण के पार हो गया,

    देह और मन के ऊपर जा

    ख़ुद का जब दीदार हो गया !///
    क्या बात है अनीता जी! जो इस रूहानी अवस्था तक पहुँच गया उसे तो मुक्ति मिल गई समझो! बहुत सुंदर हृदयाग्राही रचना के लिए हार्दिक बधाई!! 🙏

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    1. स्वागत व आभार रेणु जी ! मन को विश्राम वहीं जाकर ही मिलता है

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