बुधवार, मार्च 5

हमको हमसे मिलाये जाता है


 हमको हमसे मिलाये जाता है 

हर शुबहे को गिराए जाता है 

वह हर इक पल उठाये जाता है 


खुदी को सौंप कर जिस घड़ी देखा 

वह ख़ुद जैसा बनाये जाता है 


न दूरी न कोई भेद है उससे 

 हमको हमसे मिलाये जाता है 


 चाह जब घेरने लगती हृदय को 

 भँवर से दूर छुड़ाए जाता है 


घेरा हवा औ' धूप की मानिंद

ज्यों आँचल में छुपाये जाता है 


 हो रहो उसके महफ़ूज़ रहोगे 

 सबक़ यह रोज़ सिखाये जाता है  


रविवार, मार्च 2

अब बहुत हुआ लुकना-छिपना


अब बहुत हुआ लुकना-छिपना

कब अपना घूंघट खोलेगा 
कब हमसे भी तू बोलेगा, 
राधा का तू मीरा का भी 
कब अपने सँग भी डोलेगा! 

अपना राज छिपा क्यों रखता 
क्यों रस तेरा मन ना चखता, 
जब तू ही तू है सभी जगह 
इन नयनों को क्यों ना दिखता! 

अब और नहीं धीरज बँधता
मुँह मोड़ भला क्यों तू हँसता, 
अब बहुत हुआ लुकना-छिपना  
तुझ बिन ना अब यह दिल रमता! 

जो तू है, सो मैं हूँ, सच है 
पर मुझको अपनी खबर कहाँ, 
अब तू ही तू दिखता हर सूं 
जाती है अपनी नजर जहाँ ! 

यह कैसा खेल चला आता 
तू झलक दिखा छुप जाता है, 
पलकों में बंद करूं कैसे 
रह-रह कर बस छल जाता है !