बुधवार, मार्च 5

हमको हमसे मिलाये जाता है


 हमको हमसे मिलाये जाता है 

हर शुबहे को गिराए जाता है 

वह हर इक पल उठाये जाता है 


खुदी को सौंप कर जिस घड़ी देखा 

वह ख़ुद जैसा बनाये जाता है 


न दूरी न कोई भेद है उससे 

 हमको हमसे मिलाये जाता है 


 चाह जब घेरने लगती हृदय को 

 भँवर से दूर छुड़ाए जाता है 


घेरा हवा औ' धूप की मानिंद

ज्यों आँचल में छुपाये जाता है 


 हो रहो उसके महफ़ूज़ रहोगे 

 सबक़ यह रोज़ सिखाये जाता है  


5 टिप्‍पणियां:

  1. प्रकृति की यही तो अनोखी और सुंदर विशेषता है कि जब हम उसके पास जाते है तो मायारुपी जग के सारे बंधनों के घेरे खुद-ब-खुद शिथिल पड़ने लगते है । फिर चाहे प्रकृति को माया ही क्यों न कहा जाए। वो हम सबका ममता देती है ।

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    1. सही कहा है आपने, माया हो या माया पति दोनों अपनी बाँहें फैलाकर हमारा स्वागत करते हैं, स्वागत व आभार प्रियंका जी

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में गुरुवार 06 मार्च 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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