हमको हमसे मिलाये जाता है
हर शुबहे को गिराए जाता है
वह हर इक पल उठाये जाता है
खुदी को सौंप कर जिस घड़ी देखा
वह ख़ुद जैसा बनाये जाता है
न दूरी न कोई भेद है उससे
हमको हमसे मिलाये जाता है
चाह जब घेरने लगती हृदय को
भँवर से दूर छुड़ाए जाता है
घेरा हवा औ' धूप की मानिंद
ज्यों आँचल में छुपाये जाता है
हो रहो उसके महफ़ूज़ रहोगे
सबक़ यह रोज़ सिखाये जाता है
https://youtu.be/JOZab-7KGrU?si=Rt9RrsBaOzh20x2r
जवाब देंहटाएंप्रकृति की यही तो अनोखी और सुंदर विशेषता है कि जब हम उसके पास जाते है तो मायारुपी जग के सारे बंधनों के घेरे खुद-ब-खुद शिथिल पड़ने लगते है । फिर चाहे प्रकृति को माया ही क्यों न कहा जाए। वो हम सबका ममता देती है ।
जवाब देंहटाएंसही कहा है आपने, माया हो या माया पति दोनों अपनी बाँहें फैलाकर हमारा स्वागत करते हैं, स्वागत व आभार प्रियंका जी
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में गुरुवार 06 मार्च 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार दिग्विजय जी !
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