आया मार्च
आया मार्च ! हरी आभा ले
वृक्षों ने नव पल्लव धारे,
धानी चमकीले रंगों से
तरुवर ने निज गात सँवारे !
आया मार्च ! अरुण आभा ले
फूला पलाश वन प्रांतर में,
चटक शोख़ रक्तिम पल्लव से
डाली-डाली सजी वृक्ष में !
आया मार्च ! मौसम रंगीन
फागुन की आहट कण-कण में,
बैंगनी फूलों वाला पेड़
बस जाता मन में नयनों से !
आया मार्च ! महक अमराई
छोटी-छोटी अमियाँ फूटीं,
भँवरे डोला करें बौर पर
दूर नहीं रस भरे आम भी !
आया मार्च ! कहीं बढ़ा ताप
कहीं अभी भी शीत व्यापता,
कुदरत की लीला पर मानव
चकित हुआ सा रहे भाँपता !
इस सुंदर प्रकृति का सौंदर्य यूँही बना रहा । हम प्रकृति के प्रति अपनी नैतिक जिम्मेदारी को समझे और उस ममतामयी प्रकृति की गोद में वापस लौटे एक संतुलन के साथ एक समन्वय के साथ !
जवाब देंहटाएंअति मनमोहक रचना।
जवाब देंहटाएंसस्नेह
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार ११ मार्च २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।