सोमवार, मार्च 10

आया मार्च

आया मार्च 


आया मार्च ! हरी आभा ले

वृक्षों ने नव पल्लव धारे, 

धानी चमकीले रंगों से 

तरुवर ने निज गात सँवारे !


आया मार्च ! अरुण आभा ले 

फूला पलाश वन प्रांतर में, 

चटक शोख़ रक्तिम पल्लव से 

डाली-डाली सजी वृक्ष में !


आया मार्च ! मौसम रंगीन 

फागुन की आहट कण-कण में, 

बैंगनी फूलों वाला पेड़ 

बस जाता मन में नयनों से !


आया मार्च ! महक अमराई 

छोटी-छोटी अमियाँ फूटीं, 

भँवरे डोला करें बौर पर 

दूर नहीं रस भरे आम भी !


आया मार्च ! कहीं बढ़ा  ताप 

कहीं अभी भी शीत व्यापता, 

कुदरत  की लीला पर मानव 

चकित हुआ सा रहे भाँपता !



2 टिप्‍पणियां:

  1. इस सुंदर प्रकृति का सौंदर्य यूँही बना रहा । हम प्रकृति के प्रति अपनी नैतिक जिम्मेदारी को समझे और उस ममतामयी प्रकृति की गोद में वापस लौटे एक संतुलन के साथ एक समन्वय के साथ !

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  2. अति मनमोहक रचना।
    सस्नेह
    सादर।
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार ११ मार्च २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं