ट्रेन की खिड़की से
उस दिन दिखे थे
दूर तक फैले सजे-संवरे चौकोर खेत
कतारों में उगी फसलें
तैरती बत्तखें, लघु नाव
निकट पटरियों के पोखर में
बांसों के झुरमुट गुजरे कि नजर आये
चरती हुई गायों के झुण्ड
पानी में जलकुम्भी पर उग आए बैंगनी फूल
मीलों तक फैले कदलीवन
भा गया एक छतरीनुमा वृक्ष
कहीं ढेर खपरैल के
उठता धुआँ साफसुथरी झोंपड़ी से
छप्पर पर छायी बेलें
कटे हुए भूरे ढेर फसलों के
भैंस पर सवारी करते नंग-धड़ंग बच्चे
हरियाली के प्रांगण में खिली सरसों की पीलिमा
दूर क्षितिज तक पसरे आकाश की नीलिमा
किसी खेत में जलते पुआल का धुआँ
पगडंडी पर बोझा ढोती एक ग्राम बाला
पीछे-पीछे खिलखिलाती युवतियों का दल
ऊपर गुजरती रेल, नहर का स्वच्छ जल
पगडंडी पर धूल उड़ाती मोटरसाइकिल
उमड़ आयी किसी स्टेशन पर बच्चों की भीड़
मोबाईल टावर जो जगह-जगह उठ आए
पीले फूल जो सड़क किनारे स्वयं थे उग आए
बिजली के खम्बे, खंडहर, पुआल के टाल
नजर आया कोई ठूंठ
पेड़ सुनाते पतझड़ का हाल
दनदनाती लम्बी मालगाड़ी से
अचानक रुक गया दृश्य, कि दिखा
हरे घास के बीच चमकता
स्वच्छ जल, जैसे जड़ा हो नगीना
गांव के रेलवे फाटक के पार दौड़ते बच्चे
जीती जागती फिल्म
सत्यजीत रे की हो जैसे
गोधूलि उड़ातीं गउओं के झुण्ड
समांतर सड़क पर दौड़ते वाहन
दृष्टि अटकी, सरवर में सलेटी बगुले
काली मिट्टी पर थे जिनके पैरों के निशान
पानी में झांकते उड़ते बगुलों के प्रतिबिम्ब
याद दिला गए भूले बिसरे बिम्ब
विशाल नदी का पुल किया पार
होने लगा संध्या का प्रसार
अँधेरे में गुम होते झोंपड़े
जंगल काले पेड़ों के
बीच-बीच में आ जाती कोई नहर या नदी
स्टेशन पर खड़ी दूसरी ट्रेन में
कालेज छात्राओं की हँसी
एक बच्चे की तुतलाहट
भर गयी थी भीतर एक तरावट
उस दिन ट्रेन की खिड़की से...झांकते !
रेल यात्रा का अनुपम दृश्य....
जवाब देंहटाएंबड़ी मनोरम रेल यात्रा रही ...वैसे हर एक यात्री के साथ ऐसा ही होता है पर आपने हु-ब-हु अपने शब्दों में बांध लिया।ये एक बहुत बड़ा हुनर है।
जवाब देंहटाएंपोस्ट काफ़ी कुछ याद भी दिलाता है (सावन के महीने की भी और शरद ऋतू की भी)
पधारिये आजादी रो दीवानों: सागरमल गोपा (राजस्थानी कविता)
रोहितास जी, स्वागत है आपका..आभार !
हटाएंसुन्दर दृश्य....
जवाब देंहटाएंrail yatra ko apne shabdon me bahut hi sundar sajaya hai aapne ....
जवाब देंहटाएंएक मनोहारी यात्रा करा दी आपने ...बढ़िया ..!!
जवाब देंहटाएंसार्थक अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंसाझा करने हेतु आभार!
महेश्वरी जी, डॉ संध्या जी, डॉ शिखा जी व डॉ शास्त्री आप सभी का आभार !
हटाएंसुन्दर चित्रण. रेल यात्राएं मुझे भी बेहद पसंद है.
जवाब देंहटाएंनिहार जी, आभार !
हटाएंरेल यात्रा बनाम चल चित्र - बढिया अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंLATEST POST सुहाने सपने
वाह..सटीक शीर्षक दिया है आपने इस कविता का..दस में से आठ तो अध्यापक दे ही देंगे..
हटाएंबढ़िया बिम्ब और वर्रण प्रधान रचना .
जवाब देंहटाएंसुन्दर ... अति सुन्दर ... आपने तो अपने साथ हमें भी सैर करा दी ट्रेन की
जवाब देंहटाएंशुक्रिया शालिनी जी..
हटाएंबहुत सुन्दर पढ़ते- पढ़ते हर द्रश्य सजीव सा आँखों के सामने आता गया बधाई आपको
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर पढ़ते- पढ़ते हर द्रश्य सजीव सा आँखों के सामने आता गया बधाई आपको
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगता है रेल की खिड़की से देखना सब सामने आता रहता है,बैठे-बैठे आनन्द उठाते रहें.पर अब एसी के शीशे बाधा बन गए हैं पारदर्शिता कम हो जाती है.मुझे तो एसी से अधिक अच्छे फ़र्स्ट क्लास के डब्बे लगते हैं.
जवाब देंहटाएंआपने सही कहा है, एसी के डिब्बे दृश्य को कुछ धुंधला कर देते हैं, लेकिन गुहाटी राजधानी के कुछ नए शीशे अब भी पारदर्शी हैं, आभार!
हटाएंरविकर जी, आभार !
जवाब देंहटाएंवाह.....वाह अनीता जी.........यात्रा का इतना सुन्दर, सजीव और सटीक वर्णन और वो भी कविता के रूप में ये आप जैसी कवियत्री ही कर सकती है.....वाह ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चित्र खीचा है ..
जवाब देंहटाएंरेल यात्रा एक अलग अनुभव प्रदान करती है और इस अनुभव को आपने कविता में समेटा है जो बहुत सुंदर लगा.
जवाब देंहटाएंlajawab
जवाब देंहटाएंएक पूरा पर्यावरण ,सजीव माहौल बुनती है यह रचना सरपट दौड़ती अपनी रफ़्तार से ज़िन्दगी का .बिम्ब शाम के धुंधलके का गौ धूलि का खेत खलिहान गाँव की पगडंडियों का धूल उठाती बिना साय- लेंसर की फटफटी का .बढ़िया रचना .
जवाब देंहटाएंजीवंत रचना ।।
जवाब देंहटाएंलाज़वाब शब्द चित्र...
जवाब देंहटाएंBahut kuchh yaad dila diya aapne,aabhar..
जवाब देंहटाएंSadar
इमरान, रचना जी, आदित्य जी, आशा जी व मंटू जी आप सभी का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंकमाल का शब्द चित्र खींचा है आपने! वाह!!!... मन आनंद से भर गया।
जवाब देंहटाएंमनोरम..
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