रत्नाकर की थाह कौन ले
सागर ने जिस क्षण से स्वयं को
लहरें होना मान लिया,
बनना, मिटना, आहत होना
उस पल से ही ठान लिया !
माना लहरें भरे ऊर्जा
मीलों दूर चली आती हैं,
खाली सीपों के खोलों को
संग रेत बिखरा पाती हैं !
लहरों से ही जो पहचाने
सागर उसे कहाँ मिलता है,
दूर अतल गहराई में ही
जीवन का मोती खिलता है !
भ्रम ही हो सकता सागर को
लहरों के आकर्षण से,
कहाँ छिपेगी ढेर संपदा
जागे लहर विकर्षण से !
थम जाती हैं लहरें जिस पल
सागर स्वयं में टिक जाता ,
देख चकित होता फिर पल पल
स्वयं की थाह नहीं पाता !
बहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंपधारें बेटियाँ ...
लहरों से ही जो पहचाने
जवाब देंहटाएंसागर उसे कहाँ मिलता है,
दूर अतल गहराई में ही
जीवन मोती सा खिलता है !
वाह ...बहुत सुंदर
अत्यंत सुन्दर रचना ,राम नवमी की शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंlatest post तुम अनन्त
लहरों से ही जो पहचाने
जवाब देंहटाएंसागर उसे कहाँ मिलता है,
दूर अतल गहराई में ही
जीवन मोती सा खिलता है !
बहुत सुन्दर....
बहुत सुन्दर रचना .......रत्नाकर की थाह लेना आसान नहीं है उसी तरह जिस तरह मन की ......
जवाब देंहटाएंसमुन्दर जैसे गहरे अर्थ लिए बेहतरीन अभिव्यक्ति... आभार
जवाब देंहटाएंbahut khoob
जवाब देंहटाएंथाह लेने वाला उसी में समा जाता है ..
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