बुधवार, अप्रैल 10

जैसे कोई दीप जला हो


जैसे कोई दीप जला हो



प्रीत पुरानी युगों-युगों की
याद दिलाये उस बंधन की,
रास रचाया था जब मिलकर
छवि भर ली थी कमल नयन की !

फिर जाने क्यों हुआ विछोह
जकड़ गया था मन को मोह,
भुला ही दिया सुख स्वप्नों को
स्वयं से ही कर डाला द्रोह !

एक घना आवरण ओढ़े
जीवन था सुख से मुख मोड़े,
दिल को किसी तरह बहलाते
दूजों के कितने दिल तोड़े !

पीड़ा लेकिन क्यों कर भाती
बार-बार कुछ स्मरण दिलाती,
भूले हुए किसी सुदिन का
रह-रह नींद में स्वप्न दिखाती !

तब उसने संदेशा भेजा
सिर आँखों पर जिसे सहेजा,
किया कुबूल निमंत्रण उसका
जिसको युगों से न था देखा !

जैसे कोई दीप जला हो
बहुत पुराना मीत मिला हो,
ऐसे अपनाया है उसने
जैसे उत्पल कहीं खिला हो !

17 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर प्रस्तुति-
    शुभकामनायें-

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  2. उत्तर
    1. मंटू जी, रविकर जी व कालीपद जी सुस्वागत व आभार !

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  3. जैसे कोई दीप जला हो
    बहुत पुराना मीत मिला हो,
    ऐसे अपनाया है उसने
    जैसे उत्पल कहीं खिला हो !


    बहुत सुन्दर ,अप्रतिम ,रागात्मक रचना प्रकृति परमात्म प्रेम से संसिक्त .

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  4. प्यारे शब्द बहुत सुन्दरता से रचे हुए.

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  5. जैसे कोई दीप जला हो
    बहुत पुराना मीत मिला हो,

    बहुत बहुत सुन्दर ।

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    उत्तर
    1. निहार जी व इमरान, ऐसे ही आते रहिये इस पोस्ट पर...स्वागत है..

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  6. माहेश्वरी जी, व मानव जी, स्वागत व आभार !

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  7. जैसे कोई दीप जला हो
    बहुत पुराना मीत मिला हो,
    ऐसे अपनाया है उसने
    जैसे उत्पल कहीं खिला हो !

    अनुभूत की सशक्त गीतात्मक अभिव्यक्ति .

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  8. खिले उत्पल का सुवास मदमस्त कर रहा है..

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  9. सुंदर शब्दों में नेक ख्याल.

    नवसंवत्सर की शुभकामनाएँ.

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  10. वीरू भाई, देवेन्द्र जी, अमृता जी व रचना जी आप सभी का स्वागत व आभार!

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  11. दीप पर्व आपको सपरिवार शुभ हो !

    कल 03/11/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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