गुरुवार, नवंबर 7

कविता-जीवन-गीत

कविता

एक सी होती है
हर कविता की आत्मा
आदर्शों को पा लेने की चाह
और न पा सकने की विवशता
पर उम्मीद से भरी उसकी आँखें
नहीं थकतीं... तो नहीं ही थकतीं !

जीवन

मन के एक अँधेरे सूने
गह्वर के तल में
घनी गुल्म लताओं के घेरे के पीछे
किसी एकांत कोने में
 कभी अचानक.. विधु की आभा
 एक पल के लिए
जगती तल पर स्थित कोई
फूल हो जैसे !

गीत

न सुलाए मोद में जो
गीत वह जो प्राण भर दे,
युग-युगों से सुप्त उर में
भीषण हुँकार भर दे !

भीरु कातर इस नगर में
 शक्ति का संचार कर दे,
 इस धरा से उस गगन तक
दस दिशा गुंजार कर दे !

दूर कर दे भय, निराशा
 मोह का संहार कर दे,
 चीर डाले जो अँधेरा
 रौशनी हर द्वार भर दे !


15 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया है आदरेया-
    आभार आपका-

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  2. दूर कर दे भय, निराशा
    मोह का संहार कर दे,
    चीर डाले जो अँधेरा
    रौशनी हर द्वार भर दे !
    बहुत सुन्दर सकारात्मक भाव जगाती रचना... आभार

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (09-11-2013) "गंगे" चर्चामंच : चर्चा अंक - 1424” पर होगी.
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
    सादर...!

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  4. सुन्दर भाव कणिकाएं और एक साबुत कविता।

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  5. सुन्दर भाव कणिकाएं और एक साबुत कविता।

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  6. बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...

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  7. सच में जीवन का गीत तो ऐसा ही होता है जैसा आपने चित्रित किया है ...
    सार्थक ...

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  8. आप सभी सुधी पाठक जन का स्वागत व हृदय से आभार

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