गुरुवार, फ़रवरी 5

सुर में भरकर गा लेना है

सुर में भरकर गा लेना है


प्रस्तर में मूरत तो है ही
केवल व्यर्थ हटा देना है,
इस जीवन में अर्थ घटेगा
केवल व्यर्थ घटा देना है !

शब्दों में ही छुपा गीत है
केवल उन्हें बिठा देना है,
छंदों से संगीत बहेगा
सुर में भरकर गा लेना है !

माटी में ही गंध छिपी है
उपवन एक बना लेना है,
सुमनों से ही मधु टपकेगा
भ्रमरों को चुरा लेना है !

हर अंतर में प्रीत छिपी है
नयनों में बसा लेना है,
हाथों में सौभाग्य की रेखा
आगे बढ़कर पा लेना है !





2 टिप्‍पणियां: