मन कैसा मतवाला
छोटी सी गठरी को छाती से लगाया
कैसे हो बड़ी इस आस को जगाया
मांग को ही प्रेम समझा कुछ हाथ न आया
फूल तोड़ने चले, था बबूल उगाया
ईंट-पत्थर जोड़े थे भरम हीरों का पाला
गंवाने के डर से खुद को कैद में डाला
जो था न कहीं व्यर्थ ही उस भय को सम्भाला
बेसहारा से सहारा माँगा मन कैसा मतवाला
कुछ होने का जूनून बेहोश किये था
खुद का भी अभी जिसे होश नहीं था
उस मन के इशारों पर क्या-क्या नहीं सहा
फकत याद रही जिसकी वजूद न रहा
bahut khoob !!
जवाब देंहटाएंकितनी आशाएं, कितने भ्रम, कितने जूनून पाले रखता है यह मन अपने भीतर .... गहन भावाभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर एवं भावपूर्ण.
जवाब देंहटाएंसतीश जी, शालिनी जी व राजीव जी, स्वागत व आभार !
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