गुरुवार, फ़रवरी 26

वह हँसी

वह हँसी


परमात्मा सबसे बड़ा विदूषक है
वह जिसे कहते हैं न हंसोड़ !
उसने पट्टी बाँध दी है आँखों पर
और छोड़ दिया है स्वयं को खोजने के काम में
कभी कोई खोल देता है आवरण
तो खिलखिला कर हँस देता है
व्यर्थ के जंजाल से उबर कर
 वही चैन की नींद सोता है

छ्न्न से फूट पडती है हँसी
जब स्वप्न से जग जाता है कोई रात आधी
हमीं थे जो खुद को दौड़ाए जा रहे थे
शेर बनकर खुद को खाए जा रहे थे
और दिन में जो स्वप्न बुने चले जाता है कोई
टूटें...तब भी ऐसा ही हँस देना होगा
जानता है जो... वही असल में जीता है


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