गुरुवार, जुलाई 16

लद्दाख – धरा पर चाँद-धरा भाग -३

लद्दाखधरा पर चाँद-धरा 

३० जून
सुबह उठकर प्रातः भ्रमण को गये. आकाश पर बादल थे. कुछ जवान समूह में जा रहे थे. कुछ लोग जॉगिंग कर रहे थे. वापस आकर च्यवन प्राश तथा भुने हुए बादाम खाकर चाय का लुत्फ़ लिया. आज हम नुब्रा वैली जा रहे हैं जो यहाँ से एक सौ तीस किमी दूर है. रात्रि में वहीं रहेंगे तथा कल शाम तक वापस लौटेंगे.
१ जुलाई

बहते हुए पानी का कल-कल शोर, रंग-बिरंगी चिड़ियों का मधुर कलरव तथा धारा के दोनों तरफ उगे घने वृक्षों की कतार एक अनुपम दृश्य का संयोजन कर रहे हैं. परमात्मा की बनाई इस सुंदर सृष्टि का आनंद लेने के लिए हम घर से इतनी दूर यात्रा करके आये हैं, कूर्ग की याद दिला रहा है यहाँ का वातावरण ! कल सुबह दही व अजवायन के परांठों का नाश्ता करके हम नौ बजे यात्रा पर निकले. इस बार हमारे ड्राइवर थे टी दोरजी जो हाल ही में सेना से रिटायर्ड हुए हैं, शांत स्वभाव के इस बौद्ध के मन में दलाई लामा के प्रति विशेष आदर है. मार्ग में जहाँ वे आये थे, उन स्थानों को दिखाया, किस तरह लोगों ने उनका स्वागत किया इसका विवरण बताया. दलाई लामा ने लद्दाख वासियों को शाकाहारी रहने का उपदेश दिया है. इतनी ठंड होने के बावजूद यहाँ अस्सी प्रतिशत लोग शाकाहारी हैं. ज्यादातर लोगों के चेहरे एक सरल मुस्कान से खिले रहते हैं. यह रिजॉर्ट ‘रॉयल कैम्प’ भी पूर्णतया शाकाहारी व्यंजन परोसता है, प्याज लहसुन के बिना भी, क्योंकि कई जैन लोग भी यहाँ आते हैं.  लेह से चलते समय जो पहला शांति स्तूप आया उसका एक चक्कर लगाकर ड्राइवर आगे बढ़ा. शहर से बाहर निकलते ही दोनों ओर विशाल पर्वत मालाएं आरम्भ हो गयीं. सलेटी, ग्रे, भूरे कहीं काले पर्वत और उनके पार बर्फ से ढकी चोटियाँ ! किस दृश्य को कैद करें यह सोचते ही अगला दृश्य आ जाता जो उससे भी बेहतर होता. कहीं-कहीं हरियाली भी थी, कहीं कोई छोटी जलधारा, बीच–बीच में कोई गाँव जिसमें जौ तथा सरसों की खेती भी की हुई थी. 

जैसे-जैसे ऊंचाई बढती गयी चट्टानों और पहाड़ों पर जो बर्फ दूर से दिखाई देती थी पास से नजर आने लगी. एक जगह भेड़ों व बकरियों का एक बड़ा रेवड़ सडक पार करता हुआ दिखा. अब सडक पर बर्फ का कीचड़ नजर आने लगा. लगभग तीस किमी की लम्बाई तक सड़क खराब थी, रास्ते में कई जगह मजदूर काम कर रहे थे. ड्राइवर ने बताया उनमें से कई बिहारी थे. अब हम ‘खर्दुन्गला दर्रे’ के नजदीक पहुंचते जा रहे थे. चारों तरफ श्वेत हिम से आच्छादित पर्वत मालाएं ! जिन्हें पहले हम हवाई जहाज से देखकर ही आनंदित होते थे, उनके निकट से गुजरना और उन्हें छूना एक अविस्मरणय अनुभव था. १८३२५ फीट की ऊंचाई पर स्थित यह विश्व की सर्वाधिक ऊंची मोटरेबल रोड है. सभी गाड़ियाँ वहाँ रुक गयीं और प्रफ्फुलित यात्रीगण उतर कर हिमाच्छादित पर्वतों के साथ तस्वीरें उतारने लगे. मैं भी निकट के एक पर्वत पर चढ़ गयी और लगभग पांच मिनट ही वहाँ रुकी पर जब नीचे उतर कर आई तो जैसे दिल बैठने लगा, कार तक पहुंचते-पहुंचते तो होश उड़ने लगे. ड्राइवर कार पार्क करके चला गया था पतिदेव ने उसे बुलाया और जितनी जल्दी हो सका उस ऊंचाई से हम नीचे उतरने लगे, सारे लक्षण जितनी तीव्रता से आये थे वैसे ही मिटने लगे और जल्द ही स्थिति सामान्य हो गयी. कई जगह पढ़ा था कि दस-पन्द्रह मिनट से ज्यादा चोटी पर ठहरना खतरनाक हो सकता है.

 वापसी में एक जगह रुककर पुनः हिम की तस्वीरें लीं. नुब्रा वैली पहुंचने से पूर्व एक गाँव खरदुम में चाय पी, छोटे से रेस्त्रां में लोगों का तांता लगा हुआ था, भोजन भी मिल रहा था और चाय, मैगी, कोल्ड ड्रिंक्स भी. ड्राइवर वहाँ का परिचित था उसने वहीं भोजन करने को कहा पर हमें गंतव्य पर पहुंचने की शीघ्रता थी, सो उसने खाना खाया और हम आगे बढ़े. कलसार नामक स्थान पर पहुंचे तो ट्रैफिक रुका हुआ था, पता चला सड़क पर कोलतार बिछाने का काम चल रहा है. दूसरी तरफ भी गाड़ियों का काफिला इकट्ठा हो गया था. आधा घंटा हम आराम से बैठे रहे फिर जैसे-जैसे समय बीतने लगा भूख सताने लगी. एक घंटा हो गया तो यही उचित समझा, उतर कर कोई ढाबा खोजें, आगे गये तो कितने ही यात्री वहाँ स्थित होटलों, ढाबों में बैठे थे. एक पंजाबी ढाबे में पंजाबी लडकी ने हमें चावल पर चने-उड़द की दाल जिसमें राजमा भी दिख रहे थे, परोसे तथा साथ में सूखी मिश्रित सब्जी. तब तक ट्रैफिक भी खुल गया था और यात्रा पुनः आरम्भ हो गयी. दिस्कित गाँव में पहुंचे तो दूर से ही एक सुंदर बुद्ध प्रतिमा के दर्शन होने लगे थे जो एक पहाड़ी पर बने मन्दिर के ऊपर बनी थी. चमकदार रंगों से सजी प्रतिमा को देखते ही एक अद्भुत शांति का अनुभव हो रहा था. ऊपर पहुंचे ही थे कि वर्षा होने लगी सो जल्दी ही नीचे उतरकर मन्दिर के भीतर गये जहाँ भगवान बुद्ध, मंजुश्री, तथा तारा देवी कि मूर्तियाँ थीं. दलाई लामा का एक चित्र भी था, पता चला एक बार दलाई लामा वहाँ आकर ठहरे थे. 

आगे की यात्रा का दृश्य अत्यंत मनोरम था, एक ओर ऊंचे पर्वत दूसरी और श्योक नदी का साफ जल तथा हरियाली भी नजर आने लगी थी. जौ की खेती की हुई थी और कहीं-कहीं घाटियों में काली गायें नजर आ रही थीं. हुन्दर गाँव में हमें रुकना था जो रेतीले मैदानों तथा दो कूबड़ वाले ऊंटों के लिए जाना जाता है. दोरजी हमें ‘रॉयल कैम्प’ में ले गया, जहाँ का वातावरण हमें इतना भाया कि अन्य गेस्ट हाउस या कैम्प देखने कि जरूरत महसूस नहीं हुई. गर्मजोशी से हमारा स्वागत हुआ, अरुण नामका केयरटेकर जो दार्जलिंग का रहने वाला था, उसने कैम्प दिखाया, अच्छा लगा. बाहर से श्वेत तथा भीतर से पीले रंग का, फ्लैप वाली चार खिड़कियाँ, एक द्वार जो चेन से बंद होता था, तथा सटा हुआ स्नानघर. सोलर पैनल लगे थे उन्हीं से बिजली भी बनती है तथा सुबह के समय गर्म पानी भी आता है. 

4 टिप्‍पणियां:

  1. अनीता जी जैसा कि मैने आग्रह किया था ,आपने सारा विवरण काफी विस्तार से लिखा है और जीवन्त भी . पता नही कभी हमें वहाँ जाने का अवसर मिलेगा या नही पर यह विवरण पढ़कर भी घूमने का ही अहसास हुआ है . हिमालय सचमुच महान और अद्भुत है . भगवान बुद्ध की यह प्रतिमा कुछ अलग और विशिष्ट है . सभी चित्र भी बहुत खूबसूरत है .

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सही कहा है आपने, हिमालय की हिमाच्छादित चोटियाँ अद्भुत हैं..स्वागत व आभार !

      हटाएं
  2. बहुत रोचक यात्रा वृत्तान्त ...

    जवाब देंहटाएं
  3. स्वागत व आभार ! कैलाश जी

    जवाब देंहटाएं