सुख-दुःख
एक
को लिया तो दूसरा पीछे आने ही वाला है
चाहा
सुख को तो दुःख को गले लगाना ही है
पार
हुआ जो मन दोनों से
उसने
ही यह राज जान लिया,
सुख
की मिन्नत जिसने छोड़ी
दुःख
के भी वह पार हो गया !
प्रकृति
का ही यह नियम है
जिसे
जानकर मुक्त हुआ मन,
जिस
पल गिरी चाह अंतर से
मुस्काया
वासन्ती जीवन !
सीधा
सरल गणित जीवन का
खोजा
जिसने दिया गंवाय,
सहज
हुआ जो हटा दौड़ से
पल-पल
सुख बरसता जाय !
ना होना ‘कुछ’ बस होना भर
जिसने
जाना यह संतोष,
बहे
पवन सा जले अगन सा
पाए
नभ, नीर सा तोष !
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंयहाँ परम तोष प्राप्त होता है ।
जवाब देंहटाएंBahut sahi kaha aapne.
जवाब देंहटाएंThanks & Welcome to my new blog post...
और जीवन की सम्पूर्णता भी इसी से है.
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