बुधवार, फ़रवरी 8

सीधे घर वापस ले चल दी




सीधे घर वापस ले चल दी

कितने ख्वाब अधूरे मन में 
कितनी  आशाएं पलती थीं, 
मृत्यु ने दस्तक भी न दी 
सीधे घर वापस ले चल दी !

कुछ भी न कह पाये मन की 
जीवन एक अधूरी गाथा,
साथ जियेंगे साथ मरेंगे 
घबराहट में  भूला वादा  !

कितनी यात्रायें शेष थीं 
  अंतिम होगी यह  खबर किसे,
जीवन भी अभी नहीं मिला था 
भेंट अचानक हुई मौत से !

रहे भुलाये जिसको चलते 
साथ-साथ शायद चलती थी,
जीवन जिसको मान रहे थे 
भीतर ही मृत्यु पलती थी !

होश संभाले हर पल कोई 
वही इसे जान सकता है,
मीत बनाये जो मृत्यु को 
रार वही ठान सकता है !

जीवन-मृत्यु संगी साथी 
सुख-दुःख या जैसे दिन-रात,
एक साथ दूजा मिलता है 
है इतनी सी  जो समझे बात ! 

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 09-02-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2591 में दिया जाएग्या
    धन्यवाद

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  2. जिस दिन हमने पहला क़दम जीवन में रखा था, उसीं दिन हमने पहला क़दम मौत की तरफ भी बड़ा दिया था।
    कुछ पा लिया हैं,
    कुछ पाने की चाहत हैं।
    एक जीवन में सभी चाहते पूरी तो नहीं होती।
    http://savanxxx.blogspot.in

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  3. बड़ी-बड़ी और महत्वपूर्ण नाएँ अनायास घट जाती हैं जब कि छोटी-छोटी के लिये कितना तैय्यारियाँ होती हैं.

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    उत्तर
    1. कितना सही कहा है आपने प्रतिभाजी, मृत्यु की तैयारी जिसने कर ली उसने जीवन को भी जान लिया..

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  4. कितना मुश्किल होता है मौत की यात्रा को जानना और जिसका इंतज़ार किये बिना कितना कुछ करने का सपना संजोता है इंसान ...

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