सोमवार, फ़रवरी 27

बंटना ही जीवन है



 बँटना ही जीवन है 

सूर्य बाँटता है अपनी ऊर्जा
सृष्टि के हर कण से
पुहुप  सांझा करता है
 मधु और गंध
हवा प्रवेश करती आयी है अनंत नासापुटों में
अनंत काल से !

अस्तित्त्व लुटा रहा है बेशर्त पल-पल
जितना देता है वह
 उतना ही भरता जाता है
न जाने  किस अदृश्य कोष से !

लुटाती है माँ अपने अंतर का प्रेम
पोषित होगी शिशु की आत्मा
देह भी उष्ण है मन की ऊष्मा से !

शुचिता है वहाँ जहाँ बहाव है
अटका हुआ मन ही उलझाव है
रोक ली गयी ऊर्जा ही
मन का भटकाव है
अनवरत झरती ऊर्जा ही
भक्ति का भाव है !



10 टिप्‍पणियां:

  1. शुचिता है वहाँ जहाँ बहाव है
    अटका हुआ मन ही उलझाव है
    ...बिलकुल सत्य...बहाव ही जीवन है...बहुत सुन्दर और सार्थक चिंतन...

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 02-03-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2600 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन हास्य लेखक तारक मेहता का निधन और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

    जवाब देंहटाएं
  4. उत्तर
    1. बिलकुल सही..देने का भाव ही देवत्व है, देवता का हाथ सदा आशीष देता है और आत्मा का स्वभाव भी देने का ही है..आभार !

      हटाएं