जो कहा नहीं पर सुना गया
शब्दों में ढाल न
पाएँगे
जो जाम पिलाये
मस्ती के,
कुदरत बिन बोले
भर देती
मृदु मौन झर रहा
अम्बर से !
मदमस्त हुआ आलम
सारा
कुछ गमक उठी कुछ
महक जगी,
तितली भँवरों के
झुंड बढ़े
कुसुमों ने पलकें
क्या खोलीं !
नयनों से कोई
झाँक रहा
जाने किस गहरे
अन्तस् से,
कानों में पड़ी
पुकार मधुर
इक अनजानी सी
मंजिल से !
जो कहा नहीं पर
सुना गया
इक गीत गूँजता
कण-कण में,
जो छिपा नहीं पर
प्रकट न हो
बाँधें कोई उस
बंधन में !
वह पल होते अनमोल
यहाँ
खो जाये मन जब
खुद ही में,
मिटकर पा लेता
कुछ ऐसा
झलके जीवन की
गरिमा में !
वाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
बधाई
स्वागत व आभार ज्योति जी !
जवाब देंहटाएं