बुधवार, मार्च 7

महिला दिवस पर शुभकामनायें




महिला दिवस पर



कभी जो भ्रमण करती थी सावित्री की तरह
 देश-देश योग्य वर की तलाश में
गार्गी की तरह गढ़ीं वेद ऋचाएं
विवश कर दी गयी अवगुंठन में रहने को 
उड़ा करती थी जो खुले युद्ध क्षेत्र में
  शेरनी की तरह रथ की लगाम थामे
अबला की उपाधि दे चुप करा दी गयीं
अन्याय सहते हुए जब
पानी सिर से ऊपर आ गया तो
कमर कस ली उसने
और सुसजग है आज की मानुषी अति
अपने उन खोये मूल अधिकारों के प्रति
षड्यंत्र रचा गया अनजान रखने का युगों से
जिसे अपनी ही क्षमताओं से
निकल पड़ी है अप्रतिम भविष्य की ओर...
 इस बार उसके कदम आगे ही बढ़ेंगे..
हर बाधा फलांग सीढ़ी चढ़ेंगे ! 

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 08.03.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2903 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  2. वर्षों पुराना ढर्रा ढहने में वक्त तो लगता ही है
    बहुत अच्छी सामयिक प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  3. नारी चाहे तो कुछ भी असम्भव नहीं ...
    सुंदर रचना है नारी दिवस पर ...

    जवाब देंहटाएं
  4. स्वागत व आभार दिगम्बर जी !

    जवाब देंहटाएं