गीत उपजते अधरों से यूँ
रंग बिखेरे जाने
किसने
उपवन सारा महक
रहा है,
लाल, गुलाबी, नीले, पीले
कुसुमों से दिल
बहक रहा है !
एक सुवास नशीली
छायी
मस्त हुआ है आलम
सारा,
रँगी हुई है सारी
धरती
होली का है अजब
नजारा !
फगुनाई भर पवन बह
रही
उड़ा रही है पराग
गुलाल,
सेमल झूमी,
महुआ टपका
फूले कंचन,
कनेर, पलाश !
कण-कण वसुधा का
हर्षित है
किसने आखिर किया
इशारा,
मधुमास में चहकते
पंछी
जाने किसने
उन्हें पुकारा !
रस टपके मुदिता
भी बरसे
कुदरत सारी नई
हुई है,
गीत उपजते अधरों
से यूँ
जैसे वर्षा बूंद
झरी है !
मौसम का ही असर
हुआ है
मन मयूर दिनरात
नाचता,
बासंती यह पवन
सुहाना
अंतर्मन में
प्यास जगाता !
होली रंग बहाती
सुखमय
तन के संग-संग मन
भीगे,
सारे जग को मीत
बना लें
पिचकारी से प्रीत
ही बहे !
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 01.03.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2896 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत बहुत आभार दिलबाग जी !
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंप्राकृति के विभिन्न रंगों से सजी सुन्दर मनमोहक रचना ....
जवाब देंहटाएंहोली के रंग और प्रकृति के रंग इल के अनोखा समा बना रहे हैं जो दिलों को रंग जाएगा ... होली की मुबारक ...
आपको भी होली मुबारक..आभार !
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