प्रकृति और मानव
एक मास्टर स्ट्रोक मारा उसने
और बता दिया... कौन है मालिक ?
चेतावनी दी थी
सुनामी भेजी, कई तूफान भेजे
भूमिकम्प में भी राज खोला था
इबोला में भी वही बोला था
पर हमारे कान बहरे थे
नहीं सुनी हमने प्रकृति की पुकार
जो लगा रही थी वह बार बार
जारी रखा अपनी कामनाओं का विस्तार
भूल गए अपने ही स्रोत को
भूल गए कि.. हम प्रकृति के स्वामी नहीं
हैं उसका ही अंग
सुविधाओं के लोभ में निरंकुश दोहन कर,
कर रहे खुद से ही जंग
जंगल खत्म हो रहे और
हवा में घुलता जा रहा था जहर
सागरों की अतल गहराई तक प्लास्टिक का कचरा
अब बैठे हैं अपने-अपने घरों में
नहीं भर रहे नालियों में पॉलीथिन, प्लास्टिक के ग्लास और कटोरे
बन्द है पार्टियों में व्यर्थ का आडम्बर
कुछ दिनों के लिए ही सही
जो भी व्यर्थ है, वह हमसे छुड़वाया जा रहा है
कोरोना के बहाने हमें दर्पण दिखाया जा रहा है !
सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार शास्त्री जी !
हटाएंसही कहा
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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