कुछ ख्याल
‘कुछ’ होने से ‘कुछ नहीं’ हो जाना
इश्क का इतना सा ही तो फ़साना
चुप रहकर ही यह बयां होता है
आवाजों में बस रुसवा होता है
सुनो, सुनो और कुछ न कहो
उसी धारा में चुपचाप बहो
उससे बढ़कर न कुछ था न होगा जमाने में
उसी को आने दो हर बात, हर तराने में
लाख पर्दों में छिपा हो हीरा चमक खो नहीं सकता
जो सब कुछ है, वह कुछ नहीं में न हो, हो नहीं सकता
मिट-मिट कर भी जो रह जाता है
वह उसकी याद में गुनगुनाता है
बहुत सुन्दर द्विपदियाँ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 21.01.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत बहुत आभार !
हटाएं
जवाब देंहटाएंलाख पर्दों में छिपा हो हीरा चमक खो नहीं सकता
जो सब कुछ है, वह कुछ नहीं में न हो, हो नहीं सकता..सुन्दर संदेशों से भरी हुई जीवंत रचना..
स्वागत व आभार !
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2015...लाख पर्दों में छिपा हो हीरा चमक खो नहीं सकता...) पर गुरुवार 21 जनवरी 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
हटाएंवाह!खूबसूरत सृजन ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंउससे बढ़कर न कुछ था न होगा जमाने में
जवाब देंहटाएंउसी को आने दो हर बात, हर तराने में
वाह,
बेहतरीन सृजन
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
वाह हीरे का कोई जवाब नहीं
जवाब देंहटाएंडा वर्षा, यशवंत जी व विमल कुमार जी अप सभी का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंआदरणीय / प्रिय,
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग "Varsha Singh" में आपका स्वागत है। मेरी पोस्ट दिनांक 24.01.2021 "गणतंत्र दिवस और काव्य के विविध रंग" में आपका काव्य भी शामिल हैं-
httpp://varshasingh1.blogspot.com/2021/01/blog-post_24.html?m=0
गणतंत्र दिवस की अग्रिम शुभकामनाओं सहित,
सादर,
- डॉ. वर्षा सिंह
कमाल !!!
जवाब देंहटाएं