सहज है जीवन भूल गए
जग को जहाँ सँवारा हमने
मन पर धूल गिरी थी आकर,
जग पानी पी-पी कर धोया
मन का प्रक्षालन भूल गए !
नाजुक है जो जरा ठेस से
आहत होता किरच चुभे गर,
दिखता आर-पार भी इसके
कांच ही है यह भूल गए !
तुलना करना सदा व्यर्थ है
दो पत्ते भी नहीं एक से,
व्यर्थ स्वयं को तौला करते
सहज है जीवन भूल गए !
बना हुआ अस्तित्व, मिला सब
दाता ने है दिया भरपूर,
खो नहीं जाए लुट न जाए
चैन की बंसी भूल गए !
इक दिन सब अच्छा ही होगा
यही सोचते गई उमरिया,
मधुर हँसी, स्वजनों का साथ
अब भी पास है भूल गए !
सुन्दर एवं सारगर्भित संदेशों को प्रस्तुत करती कृति..
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंदीप तले अंधेरा ... ऐसा ही तो जीवन बीतता जाता है क्योंकि ये भूलें ही हमें भटकाती रहती है ।
जवाब देंहटाएंसही कहा है आपने अमृता जी, स्वागत व आभार !
हटाएंतुलना करना व्यर्थ है ... ये सच है प्राकृति ने स्वीकार किया है सहज ही इस अंतर को ... काश इंसान भी ऐसे सहज रहे ...
जवाब देंहटाएंसही है, आभार !
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