मंगलवार, जनवरी 5

नींद में ही सही...

नींद में ही सही...
कुछ स्मृतियाँ कुछ कल्पनाएँ 
बुनता रहता है मन हर पल 
चूक जाता है इस उलझन में 
आत्मा का निर्मल स्पर्श....
 यूँ तो चहूँ ओर ही है उसका साम्राज्य 
 घनीभूत अडोल वह है सहज ही ज्ञातव्य 
 पर डोलता रहता है पर्दे पर खेल 
मन का अनवरत 
तो छिप जाती है आत्मा 
असम्भव है जिसके बिना मन का होना
उसके ही अस्तित्त्व से बेखबर है यह छौना
नींद में जब सो जाता है मन कुछ पल को 
आत्मा ही होती है भीतर 
तभी नींद सबको इतनी प्यारी है 
नींद में ही हो जाती है खुद से मुलाकात 
 पर अफ़सोस ! नहीं हो पाती तब भी उससे बात 
जागरण में तो दूर हैं ही उससे 
शयन में भी हो जाते हैं दूर उससे 
कब होगा वह ‘जागरण’ 
जब जगते हुए भी प्रकटेगी वह और नींद में भी.... 
 

16 टिप्‍पणियां:

  1. ......

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 6 जनवरी 2021 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आत्मा के कोमल स्पर्श और स्वप्निल सौंदर्य का बोध कराती सुन्दर रचना..

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  3. जगती में स्वयं से वार्तालाप तो स्वयं के अंतस में जा कर ही हो सकता है ...
    तक तक स्वप्न में खुद से आनंदित होना भी कम नहीं ... सुन्दर भावपूर्ण रचना ...

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  4. आत्मा ही होती है भीतर
    तभी नींद सबको इतनी प्यारी है
    नींद में ही हो जाती है खुद से मुलाकात
    पर अफ़सोस ! नहीं हो पाती तब भी उससे बात
    जागरण में तो दूर हैं ही उससे
    शयन में भी हो जाते हैं दूर उससे
    कब होगा वह ‘जागरण’
    जब जगते हुए भी प्रकटेगी वह और नींद में भी...सशक्त व प्रभावशाली लेखन - - नमन सह।

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  5. "कब होगा वह ‘जागरण’
    जब जगते हुए भी प्रकटेगी वह और नींद में भी.... "

    बेहतरीन।

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  6. गगन जी, जिज्ञासा जी, आलोक जी, यशोदाजी, दिगम्बर जी, यशवंत जी, शांतनु जी, ओंकार जी, आप सभी का स्वागत व हृदय से आभार !

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